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________________ इधर रोहक भी अपनी कही हुई बात पूर्ण करने के लिए स्वर्णावसर की प्रतीक्षा में समय व्यतीत करने लगा। कुछ दिनों के पश्चात् वह रोहक अपने पिता के पास ही रात को सोया हुआ था। अर्धरात्रि में अचानक निद्रा खुली और कहने लगा-"पिता जी ! पिता जी ! कोई अन्य पुरुष दौड़ा जा रहा है।" बालक की यह बात सुनकर नट के मन में शंका उत्पन्न हो गई कि मेरी स्त्री सदाचारिणी प्रतीत नहीं होती । उस दिन से वह नट उससे विमुख हो गया, सीधे मुंह से बातचीत भी करनी छोड़ दी और अलग स्थान में शयन करने लग गया। इस प्रकार पति को अपने से विमुख देखकर वह जान गई कि यह सब कुछ रोहक की शरारत है। इसको अनुकूल किए बिना पतिदेव सन्तुष्ट नहीं हो सकते। उनके रुष्ट रहने से जीवन में सरसता नहीं, नीरस-जीवन किसी काम का नहीं। ऐसा सोचकर उसने रोहक को विनयपूर्वक मधुर व्यवहार से मनाया और "भविष्य में सदैव सद्व्यवहार ही रखूगी;" ऐसा विश्वास दिलाकर रोहक को संतुष्ट किया। विमाता के अनुनय से प्रसन्न होकर रोहक ने भी पिता की शंका एवं भ्रम को दूर करने का सुअवसर जानकर चान्दनी रात में अँगली के अग्र भाग से अपनी छाया पिताजी को दिखाते हुए कहा-“देखो वह पुरुष जा रहा है।" भरत नट ने सोचा जो पुरुष हमारे घर में आता है, वही डर कर भागा जा रहा है जिसके लिए रोहक संकेत कर रहा है। इतना सुनते ही उसे क्रोध की ज्वाला भभक उठी; तुरन्त उसे मारने के लिए म्यान से तलवार निकाल ली, और कहा-"कहां है वह लम्पटी पुरुष? अभी उसका काम तमाम करता हूं।" रोहक ने अपनी ही छाया को दिखाते हुए कहा-"यह है वह पुरुष" कहकर उसकी समझाने की बाल चेष्टा देखते ही भरत लज्जित हो गया और सोचने लगा ओहो ! मैंने बड़ी गलती की जोकि बालक के कहने से अपनी स्त्री के साथ अप्रीति का व्यवहार किया। इस प्रकार पश्चात्ताप करने के अनन्तर भरत नट पहले की तरह ही अपनी स्त्री से प्रेम-व्यवहार करने लगा। इधर रोहक भी सोचने लगा कि मेरे द्वारा किए गए दुर्व्यवहार से अप्रसन्न हुई विमाता कभी मुझे विष आदि के प्रयोग से मार न दे। अतः भविष्य के लिए एकाकी भोजन करना ठीक नहीं है। ऐसा सोचकर उसने अपना खाना-पीना, रहन-सहन, सब-कुछ पिता के साथ ही करने का कार्यक्रम बना लिया। __ अन्य किसी दिन कार्यवश रोहक अपने पिता के साथ उज्जयिनी नगरी गया। नगरी अपने वैभव से अलकापुरी के तुल्य समृद्ध एवं सौन्दर्य पूर्ण थी, उसे देखकर रोहक अति विस्मित हुआ और अपने मन में कैमरे की तरह उस नगरी का चित्र खींच लिया। तत्पश्चात् जब पिता के साथ अपने ग्राम की ओर आने लगा, तब नगरी से बाहर निकलते ही भरत को भूली हुई वस्तु की याद आई और उसे लेने के लिए रोहक बालक को सिप्रा नदी के तट पर बैठा कर नगरी में लौट गया। - *298*
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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