SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उदाहरण है। शिक्षा के लिए दूध - पानी की मैत्री, सूई-कैंची के उदाहरण प्रसिद्ध हैं। इसी प्रकार अन्य अन्य के विषय में समझना चाहिए। 5. रूपक- जिसमें काल्पनिक पर वास्तविकता की पुट दी जाती है । यह लक्षणावृत्ति और व्यंजनावृत्ति में काम आता है। इसके पीछे अच्छे-बुरे अनेक भाव छिपे हुए होते हैं। इसको छायावाद का एक अंग भी कह सकते हैं। उत्प्रेक्षालंकार और रूपकालंकार इसके दो पहलू हैं। संघनगर, संघमेरु, संघरथ, संघचक्र और संघसूर्य आदि प्रस्तुत सूत्र में जो उल्लेख मिलते हैं वे सब रूपक हैं। प्रस्तुत सूत्र में औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा तथा पारिणामिकी बुद्धि पर केवल कथानक के नायकों के नाम का ही निर्देश किया है। संभव है, उस काल में ये अतिप्रसिद्ध होंगे। चूर्णिकार तथा हरिभद्र वृत्तिकार के युग तक ये दृष्टान्त अतिप्रसिद्ध होने के कारण उन्होंने अपनी चूर्णि व वृत्ति में इनका उल्लेख नहीं किया। बृहद्वृत्तिकार आचार्य मलयगिरि के युग में सूत्रस्थ दृष्टान्त इतने प्रसिद्ध नहीं रहे। कुछ का तो उन्हें ज्ञान था और कुछ अनुभवी शास्त्रज्ञों से जानकर उन्होंने दृष्टान्त लिखे। उसी वृत्ति का आधार लेकर क्रमश: सभी दृष्टान्तों के लिखने का यहाँ प्रयास किया गया है। यद्यपि आजकल भी बहुत से ऐसे दृष्टान्त हैं जो कि औत्पत्तिकी बुद्धि, वैनयिकी बुद्धि, कर्मजा बुद्धि तथा पारिणामिकी बुद्धि से सम्बन्धित हैं। तदपि उनका उल्लेख न करके केवल सूत्रगत जो दृष्टान्त हैं, उन्हीं की परम्परा को अक्षुण्ण रखने के लिए, उन्हें लिखा जा रहा है। १. भरत - उज्जयिनी नगरी के निकट एक नटों का ग्राम था। उसमें भरत नामक एक नट रहता था। उसकी धर्मपत्नी का किसी असाध्य रोग से देहान्त हो गया। वह अपने पीछे रोहक (रोहा) नामक एक छोटे बालक को छोड़ गई। वह बालक होनहार, बुद्धिमान एवं पुण्यवान था। भरत नट ने अपनी तथा रोहक की सेवा के उद्देश्य से दूसरा विवाह किया। किन्तु वह विमाता, रोहक के साथ वात्सल्य, ठीक-ठीक व्यवहार नहीं रखती थी। परिणामस्वरूप रोहक ने एक दिन उस विमाता को कहा कि माता जी ! " आप मेरे साथ प्रेम-व्यवहार क्यों नहीं करतीं? जब कभी मैं देखता हूँ, तब आप की ओर से किए व्यवहार में कालुष्यता ही झलकती है, यह आपके लिए उचित नहीं है । ' 11 इससे वह क्रूर हृदय वाली विमाता बोली-" अरे रोहक ! यदि मैं तेरे साथ मधुर व्यवहार नहीं रखती हूं तो तू मेरा क्या बिगाड़ देगा? उसे उत्तर देते हुए रोहक ने कहा कि- 'मैं ऐसा उपाय करूंगा जिससे तुझे मेरे पाओं की शरण लेनी पड़ेगी।" यह बात सुनकर वह विमाता क्रुद्ध होकर कहने लगी- " अरे नीच ! तूने जो करना है, करले, मैं तेरी क्या परवाह करती हूं, तेरे जैसे बहुतेरे फिरते हैं।" इतना कहकर विमाता चुप हो कर अपने कार्य में व्यस्त हो गई। 297
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy