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________________ आकाश में तारे हैं, ठीक उतनी ही संख्या इस ढेर में तिलों की है।" हर्षान्वित होकर सबने राजा के पास जाकर वैसा ही कह सुनाया जैसा कि रोहक ने उन्हें समझाया था। राजा मन ही मन में लज्जित हुआ। ६. बालुक-अन्यदा राजा ने रोहक की परीक्षा करने के लिए ग्रामीण लोगों को आदेश दिया कि "तुम्हारे ग्राम के निकट सबसे बढ़िया रेती है। अतः उस बालू की एक डोरी बनाकर शीघ्र भेज दें।" लोगों ने रोहक से जाकर कहा कि राजा ने बाल की एक मोटी डोरी मँगवाई है। रेत की डोरी बनाई नहीं जा सकती, अब क्या किया जाए।" रोहक ने अपने बुद्धि बल से राजा को उत्तर भेजा-"हम सब नट हैं, नृत्य कला तथा बांसों पर नाचना ही जानते हैं, डोरी बनाने का धन्धा हम नहीं जानते। परन्तु फिर भी आप श्री का आदेश है, उस का पालन करना हमारा कर्त्तव्य है। अतः हमारी नम्र प्रार्थना है कि यदि आप के भंडार में अथवा अजायब घर में नमूने के रूप में पुरानी बालुकामयी डोरी हो, तो वह दे दीजिए, तदनुसार डोरी बनाने का हम प्रयत्न करेंगे और आप की सेवा में भेज देंगे।" ग्रामवासियों ने राजा को रोहक की बताई हुई युक्ति कह सुनाई। रोहक की चमत्कारी बुद्धि से राजा निरुत्तर हो गया। ७. हस्ती-राजा ने अन्य किसी दिन एक अति वृद्ध मरणासन्न हाथी उस नट ग्राम में भेज दिया। ग्रामीणों को आज्ञा दी-"इस हाथी की यथाशक्य सेवा करो, प्रतिदिन इस का समाचार मेरे पास भेजते रहना। हाथी मर गया या मरण प्रायः हो रहा है ऐसी बात न कहना, अन्यथा तुम्हें दण्डित किया जाएगा।" इस प्रकार राजा के आदेश को सुनकर सभी लोग रोहक के पास पहुँचे और राजा की आज्ञा कह सुनाई। रोहक ने इस का उपाय बतलाया-"इस हाथी को अच्छी-अच्छी खुराक देते रहो, सेवा करते रहो, पीछे जो कुछ होगा मैं उसे समझ लूंगा।" रोहक की आज्ञा से ग्रामीणों ने हाथी को उसके अनुकूल खुराक दी, परन्तु वह रात को ही मर गया। तब रोहक के कथन-अनुसार ग्रामवासियों ने मिलकर राजा से निवेदन किया-"हे नरदेव ! आज हाथी न उठता है, न बैठता है, न खाना खाता है, न लीद करता है, न चेष्टा करता है, न देखता है, न सुनता है और अधिक क्या कहें, आधी रात से सांस भी नहीं ले रहा है, यह आज का समाचार है।" राजा ने उनसे कहा-"क्या वह हाथी मर गया?" ग्रामीणों ने कहा-"राजन् ! ऐसा तो आप श्री ही कह सकते हैं, हम लोग नहीं।" यह बात सुनकर राजा चुप हो गया और ग्रामवासी सहर्ष अपने घर लौट आए। ८. अगड-कूप-अन्य किसी दिन राजा ने फिर आदेश जारी किया कि "तुम्हारे वहाँ जो सुस्वादु-शीतल-पथ्य जल पूर्ण कूप है, उस को जहाँ तक हो सके शीघ्र यहाँ भेज दो, अन्यथा तुम दण्ड के भागी बनोगे।" - * 302 * -
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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