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________________ सव्वदध्वं-परिणाम-भावविण्णत्तिकारणं-सर्वद्रव्यों को और उनकी सर्व पर्यायों को तथा औदयिक आदि भावों के जानने का कारण-हेतु है। अणंतं-वह अनन्त है, क्योंकि ज्ञेय अनन्त हैं तथा ज्ञान उनसे भी महान है। अतः ज्ञान को अनन्त कहा है। सासयं-जो ज्ञान सादि-अनन्त होने से शाश्वत है। अप्पडिवाई-जो ज्ञान कभी भी प्रतिपाति होने वाला नहीं है अर्थात् जिसकी महाज्योति किसी भी क्षेत्र व काल में लुप्त या बुझने वाली नहीं है। यहां यह शंका उत्पन्न होती है कि जब शाश्वत कहने मात्र से केवलज्ञान की नित्यता सिद्ध हो जाती है, फिर अप्रतिपाति विशेषण का उपन्यास पृथक् क्यों किया गया? इसका समाधान यह है-जो ज्ञान शाश्वत होता है, उसका अप्रतिपाति होना अनविार्य है, किन्तु जो अप्रतिपाति होता है, उसका शाश्वत होने में विकल्प है, हो और न भी, जैसे अप्रतिपाति अवधिज्ञान। अतः शाश्वत का अप्रतिपाति के साथ नित्य सम्बन्ध है, किन्तु अप्रतिपाति का शाश्वत के साथ अविनाभाव तथा नित्य सम्बन्ध नहीं है। इसी कारण अप्रतिपाति शब्द का प्रयोग किया है। ... एगविह-जो ज्ञान, भेद-प्रभेदों से सर्वथा रहित और जो सदाकाल व सर्वदेश में एक समान प्रकाश करने वाला तथा उपर्युक्त पांच विशेषणों सहित है, वह केवलज्ञान केवल एक ही है ।। सूत्र 22 ।। वाग्योग और श्रुत मूलम्-२. केवलनाणेणऽत्थे, नाउं जे तत्थ पण्णवणजोगे। ते भासइ तित्थयरो, वइजोगसुअं हवइ सेसं ॥ ६७ ॥ से त्तं केवलनाणं, से त्तं नोइंदियपच्चक्खं, से त्तं पच्चक्खनाणं ॥ सूत्र २३ ॥ .. छाया-२. केवलज्ञानेनार्थान्, ज्ञात्वा ये तत्र प्रज्ञापनयोग्याः । तान् भाषते तीर्थंकरो, वाग्योगश्रुतं भवति शेषम् ॥ ६७ ॥ तदेतत्केवलज्ञानं, तदेतन्नोइन्द्रियप्रत्यक्षं, तदेतत्प्रत्यक्षज्ञानम् ॥सूत्र २३ ॥ पदार्थ-केवलनाणेणऽत्थे-केवलज्ञान के द्वारा सर्वपदार्थों के अर्थों को, नाउं-जानकर उनमें,जे-जो पदार्थ, तत्थ-वहां, पण्णवणजोगे-वर्णन करने योग्य हैं, ते-उनको तीर्थंकर देव, भासइ-भाषण करते हैं, वइजोग-वही वचन योग है, तथा सेसं सुअं-शेष-अप्रधान श्रुत, भवइ-होता है। सेत्तं-यह, केवलनाणं-केवल ज्ञान है, सेत्तं-यह, नोइंदिपयच्चक्खंनोइन्द्रियप्रत्यक्षज्ञान है, से त्तं- यही, पच्चक्खनाणं-प्रत्यक्षज्ञान है। भावार्थ-केवलज्ञान के द्वारा सब पदार्थों को जानकर उनमें जो पदार्थ वहां वर्णन - * 287 * -
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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