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करता है और केवलदर्शन, केवलज्ञान पर। जब ज्ञान-दर्शन ऐकान्तिक तथा आत्यन्तिक निरावरण हो गए, तब उन में से एक समय में एक तो प्रकाश करे और दूसरा नहीं, यह मान्यता दोषपूर्ण है। अतः युगपदुपयोगवाद ही तर्कपूर्ण और निर्दोष है।
4. एकान्तर-उपयोग पक्ष में वे चौथा इष्टापत्तिजनक दोष निष्कारणावरणता सिद्ध करते हैं। उनका इस विषय में यह कहना है कि जब ज्ञान और दर्शन सर्वथा निरावरण हो गए, तब उनमें एक प्रकाश करता है और दूसरा नहीं। इसका अर्थ यह हुआ-आवरण क्षय होने पर भी निष्कारण आवरणता का सिलसिला चालू ही रहता है, जो कि सिद्धान्त को सर्वथा अमान्य है, इस दोष से युगपदुपयोगवाद निर्दोष ही है।
5. एकान्तर-उपयोग के पक्ष में युगपदुपयोगवादी असर्वज्ञत्व और असर्वदर्शित्व सिद्ध करते हैं, क्योंकि जब केवली का उपयोग ज्ञान में है, तब असर्वदर्शित्व और जब दर्शन में उपयोग है, तब असर्वज्ञत्व दोष सिद्धान्त को दूषित करता है। अत: यूगपदुपयोगवाद उक्त दोष से निर्दोष है।
6. क्षीण मोह गुणस्थान के चरम समय में ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय ये तीन कर्म युगपत् ही क्षय होते हैं, ऐसा आगम में मूल पाठ है।' तेरहवें गुणस्थान के प्रथम समय में ही जब आवरण युगपत् निवृत्त हुआ, तब ज्ञान-दर्शन भी एक साथ दोनों प्रकाशित होते हैं। एकान्तर-उपयोग पक्ष को दूषित करते हुए युगपदुपयोगवादी कहते हैं कि केवली को यदि पहले केवलज्ञान होता है, तो वह किसी हेतु से होता है, या निर्हेतु से ? इसी प्रकार यदि पहले दर्शन उत्पन्न होता है, तो वह किसी हेतु से होता है या निर्हेतु से ? इन प्रश्नों का उत्तर विवादास्पद होने से उपादेय नहीं। अत: युगपदुपयोगवाद ही निर्विवाद एवं आगम सम्मत है, कहा भी है
"इहराऽऽईनिहणत्तं मिच्छाऽऽवरणक्खओ त्ति व जिणस्स। इतरेतरावरणया, अहवा निक्कारणावरणं ॥ तह य असव्वण्णुत्तं, असव्वदरिसित्तणप्पसंगो य ।
जिणस्स, दोसा बहुविहा य ॥" ___ एकान्तर-उपयोगवादी का उत्तर पक्ष 1. केवलज्ञान और केवलदर्शन ये दोनों सादि-अनन्त हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं, किन्तु यह कथन लब्धि की अपेक्षा से समझना चाहिए न कि उपयोग की अपेक्षा से। मति-श्रुत और अवधिज्ञान की लब्धि 66 सागरोपम से कुछ अधिक है, जब कि उपयोग किसी एक में
एगंतरोवयोगे
1. उत्तराध्ययन सूत्र अ0 29 ।
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