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________________ ही है। . ___चन्दनबाला प्रमुख 36 सहस्र साध्वियां महावीर के शासन में हुईं, उन में से 1400 साध्वियों चे मोक्ष प्राप्त किया, यह भी आगमों में स्पष्टोल्लेख है। यह ठीक है, पुरुष की अपेक्षा से स्त्रीलिंग वाले जीव बहुत कम सिद्ध होते हैं। जहां पुल्लिग वाले एक समय में 108 सिद्ध हो सकते हैं, वहां स्त्रीलिंग में 20 हो सकते हैं, किन्तु आगमों में कहीं भी स्त्रीमुक्ति का निषेध नहीं किया, अपितु विधायक पाठ अनेक मिलते हैं। स्त्री मुक्ति का सर्वथा निषेध करना अनेकान्तवाद को ही तिलाञ्जलि देने के तुल्य है। ज्यों-ज्यों मोहकर्म की प्रकृतियों का ह्रास होता जाता है, त्यों-त्यों चारित्र की विशुद्धि होती जाती है। ऐसी प्रक्रिया जिसके जीवन में चल रही है, वही अवेदी बन सकता है। अपगत वेदी के लिए पुल्लिग शब्द का ही प्रयोग किया जाता है, स्त्रीलिंग शब्द का नहीं। जब 19वें द्रव्य तीर्थंकर घर में थे, तब उन्हें "मल्ली विदेहवरकन्ना" ऐसा कहा है, किन्तु केवलज्ञान होने पर “मल्ली णं अरहा जिणे केवली" शब्दों का प्रयोग किया है, उन्हें तीर्थंकर कहा है, तीर्थंकरी नहीं। उन्होंने साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रूप चार भाव तीर्थ की स्थापना की। जिज्ञासुओं को एतद् विषयक चर्चा ग्रन्थातर से जाननी चाहिए। .. ९. पुरुषलिंगसिद्ध-पुरुष की आकृति में रहते हुए मोक्ष पाने वाले पुरुषलिंगसिद्ध कहलाते हैं १०. नपुंसकलिंगसिद्ध-नपुंसक की आकृति में रहते हुए मोक्ष जाने वाले नपुंसकलिंग सिद्ध कहलाते हैं। नपुंसक दो तरह के होते हैं, एक स्त्रीनपुंसक और दूसरे पुरुषनपुंसक। यहां दूसरे प्रकार के नपुंसक का अधिकार है। ११. स्वलिंगसिद्ध-साधु का मुखवस्त्रिका, रजोहरण आदि जो भी श्रमण निर्ग्रन्थों का वेष होता है, वह लिंग कहलाता है। जो स्वलिंग में सिद्ध हुए हैं, उन्हें स्वलिंग सिद्ध कहते १२. अन्यलिंगसिद्ध-जिनका बाह्य वेष परिव्राजकों का है, किन्तु क्रिया आगमानुसार करके सिद्ध बने हैं, वे अन्यलिंगसिद्ध कहलाते हैं। १३. गृहस्थलिंगसिद्ध-गृहस्थ वेष में मोक्ष पाने वाले सिद्ध गृहस्थलिंग सिद्ध कहलाते हैं। जैसे मरुदेवी माता। १४. एकसिद्ध-एक-एक समय में एक-एक सिद्ध होने वाले एकसिद्ध कहलाते हैं। १५. अनेकसिद्ध-एक समय में दो से लेकर उत्कृष्ट 108 सिद्ध होने वाले अनेक सिद्ध कहलाते हैं। शंका-तीर्थसिद्ध और अतीर्थसिद्ध जब कि इन्हीं दो भेदों में सबका अन्तर्भाव हो सकता है, फिर शेष 13 भेदों का वर्णन करने की क्या आवश्यकता है? - * 275 *
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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