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"मूर्छा परिग्रहः'"-यदि मन में ममत्व नहीं है, तो बाह्य वस्त्र आदि परिग्रह नहीं बन सकते। जब बाह्य उपकरणों पर ममत्व होता है, तभी वे उपकरण परिग्रह बनते हैं, स्वयमेव नहीं। आगम में भगवान महावीर के वाक्य हैं
"जं पि वत्थं वा पायं वा, कंबलं पायपुंछणं । तं पि संजमलज्जट्ठा, धारेंति परिहरंति य ॥ न सो परिग्गहो वुत्तो, नायपुत्तेण ताइणा ।
मुच्छा परिग्गहो वुत्तो, इइ वुत्तं महेसिणा ॥" .. संयम और लज्जा के लिए जो मर्यादित उपकरण रखे जाते हैं, उन्हें परिग्रह में सम्मिलित करना, यह अनेकान्तवादियों का लक्षण नहीं है।
यदि ऐसा कहा जाए कि सर्वोत्कृष्ट दुःख का स्थान 7वीं नरक है और सर्वोत्कृष्ट सुख का स्थान मोक्ष है। जब स्त्री 7वीं नरक में नहीं जा सकती है, तो फिर निर्वाण पद कैसे प्राप्त कर सकती है ? क्योंकि उसमे तथाविध सर्वोत्कृष्ट मनोवीर्य का सर्वथा अभाव है। यह कथन भी एकान्तवादियों की तरह अप्रामाणिक है, क्योंकि सातवीं नरक की प्राप्ति उत्कृष्ट पाप का फल है और पुण्य का फल उत्कृष्ट सर्वार्थ सिद्ध विमान में देवत्व का होना, किन्तु मोक्षसुख तो आठ कर्मों के क्षय होने से उपलब्ध होता है, स्त्री का मनोवीर्य कर्मक्षय करने में पुरुष के समान ही होता है। यद्यपि गति-आगति मनोवीर्य के अनुसार होती है, तदपि गति का अन्तर अवश्य बताया है। परन्तु यह भी कोई नियम नहीं है कि जो व्यक्ति किसी कार्य को नहीं कर सकता, वह अन्य कार्य भी नहीं कर सकता, जैसे जो कृषि कर्म नहीं कर सकता, वह शास्त्रों का अध्ययन भी नहीं कर सकता। इसी तरह यह भी कोई नियम नहीं है कि जो सातवीं नरक में नहीं जा सकता, वह मुक्त भी नहीं हो सकता। जैसे भुजपुर दूसरी नरक तक जा सकता है, खेचर तीसरी तक, स्थलचर तिर्यंच चौथी तक, उरपुरसर्प पांचवीं नरक तक जा सकता है। परन्तु सभी संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय, भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और सहस्रार 8वें देवलोक तक जा सकते हैं। अत: अधोगति और ऊर्ध्वगति का परस्पर साम्यभाव नहीं है। अन्तर्मुहूर्त की आयु वाला तन्दुल मच्छ सातवीं नरक में जा सकता है, किन्तु मनुष्य नहीं, क्योंकि सातवीं नरक में पृथक्त्व वर्ष की आयु से कम वाला मनुष्य नहीं जा सकता। अन्तगडदशा सूत्र के पांचवें, सातवें तथा आठवें वर्ग में जिन साध्वियों ने अन्त समय में केवल ज्ञान प्राप्त करके सिद्धत्व प्राप्त किया है, उनका स्पष्ट उल्लेख है। कितनी उत्कृष्ट साधना की है ? तप, संयम से किस प्रकार कर्मों पर विजय प्राप्त की है ? यह भी विज्ञ जनों को ज्ञात
1. तत्त्वार्थसूत्र अ0 7वां सू० 12वां ।
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