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________________ १. तित्थसिद्धा, २. अतित्थसिद्धा, ३. तित्थयरसिद्धा, ४. अतित्थयरसिद्धा, ५. सयंबुद्धसिद्धा, ६. पत्तेयबुद्धसिद्धा, ७. बुद्धबोहियसिद्धा, ८. इथिलिंगसिद्धा, ९. पुरिसलिंगसिद्धा, १०. नपुंसगलिंगसिद्धा, ११. सलिंगसिद्धा, १२. अन्नलिंगसिद्धा, १३. गिहिलिंगसिद्धा, १४. एगसिद्धा, १५. अणेगसिद्धा, से त्तं अणंतरसिद्ध-केवलनाणं ॥ २१ ॥ ____छाया-अथ किं तद् अनन्तरसिद्ध-केवलज्ञानम् ? अनन्तरसिद्ध-केवलज्ञानं, पञ्चदशविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा १. तीर्थसिद्धाः, २. अतीर्थसिद्धाः, ३. तीर्थकरसिद्धाः, ४. अतीर्थकरसिद्धा, ५. स्वयंबुद्धसिद्धाः, ६. प्रत्येकबुद्धसिद्धाः, ७. बुद्धबोधितसिद्धाः, ८. स्त्रीलिंगसिद्धाः, ९. पुरुषलिंगसिद्धाः, १०. नपुंसकलिंगसिद्धाः, ११. स्वलिंगसिद्धाः, १२. अन्यलिंगसिद्धाः,१३. गृहिलिंगसिद्धाः,१४. एकसिद्धाः,१५. अनेकसिद्धाः, तदेतदनन्तरसिद्धकेवलज्ञानम् ॥ सूत्र २१ ॥ भावार्थ-वह अनन्तरसिद्ध-केवलज्ञान कितने प्रकार का है ? गुरु ने उत्तर दिया-वह अनन्तरसिद्ध-केवलज्ञान १५ प्रकार से वर्णित है, जैसे१. तीर्थसिद्ध, २. अतीर्थसिद्ध, ३. सीर्थंकरसिद्ध, ४. अतीर्थंकरसिद्ध, ५. स्वयंबुद्धसिद्ध, ६. प्रत्येकबुद्धसिद्ध, ७. बुद्धबोधितसिद्ध, ८. स्त्रीलिंगसिद्ध, ९. पुरुषलिंगसिद्ध, १०. नपुंसकलिंगसिद्ध, ११. स्वलिंगसिद्ध, १२. अन्यलिंगसिद्ध, १३. गृहिलिंगसिद्ध, १४. एकसिद्ध, १५. अनेकसिद्ध। यह अनन्तरसिद्ध-केवलज्ञान का वर्णन है ॥ सूत्र २१ ॥ टीका-इस सूत्र में अनन्तरसिद्ध केवलज्ञान के विषय में विवेचन किया गया है। जिन आत्माओं को सिद्ध हुए पहला ही समय हुआ है, उन्हें अनन्तरसिद्ध-केवलज्ञान कहा जाता है। अनन्तरसिद्ध-केवलज्ञानी भवोपाधिभेद से पंद्रह प्रकार के होते हैं, जैसे कि १. तीर्थसिद्ध-जिसके द्वारा संसार सागर तरा जाए उसे तीर्थ कहते हैं। वह जिन-प्रवचन, चतुर्विध-श्रीसंघ, अथवा प्रथम गणधर रूप होता है। तीर्थ के स्थापन हो जाने के पश्चात् जो सिद्ध हों, उन्हें तीर्थसिद्ध कहते हैं। तीर्थ के स्थापन करने वाले तीर्थंकर होते हैं। तीर्थ, चतुर्विध श्रीसंघ का पवित्र नाम है, जैसे कि वृत्तिकार लिखते हैं "तित्थसिद्धा इत्यादि-तीर्यते संसारसागरोऽनेनति तीर्थ, यथावस्थितसकलजीवाजीवादिपदार्थसार्थप्ररूपकपरमगुरुप्रणीतं प्रवचनं, तच्चनिराधारं न भवतीति कृत्वा सङ्घप्रथमगणधरो वा वेदितव्यं, उक्तं च-"तित्थं भन्ते ! तित्थं, तित्थगरे तित्थं ? गोयमा! - * 271 *
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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