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उक्तं च- "अट्ठसय सिद्ध थोवा, सत्तहियसया अणंत गुणिया य।
एवं परिहायंते सयगाओ, जाव पण्णासं ॥ तत्तो पण्णासाओ असंखगुणिया, उ जाव पणवीसं । पणवीसा आरंभा, संखगुणा हुन्ति एगं जा ॥"
दूसरे प्रकार से अल्पबहुत्व 1. अधोमुख से सीझे हुए सिद्ध, सब से थोड़े (किसी पूर्व वैरी ने कायोत्सर्ग स्थित मुनि को पाओं से घसीटकर अधोमुख कर दिया, उसी अवस्था में केवलज्ञान को पाकर सिद्ध हुए)।
2. ऊर्ध्वस्थित कायोत्सर्ग में सीझे हुए सिद्ध, उनसे संख्यात गुणा। 3. उत्कटासन से सीझे हुए सिद्ध, उनसे संख्यात गुणा। 4. वीरासन से सीझे हुए सिद्ध, उनसे संख्यात गुणा। 5. पद्मासन से सीझे हुए सिद्ध, उनसे संख्यात गुणा। 6. उत्तानमुख से सीझे हुए सिद्ध, उनसे भी संख्यात गुणा। 7. पाश्र्वासन से सीझे हुए सिद्ध, उनसे भी संख्यात गुणा।
तीसरे प्रकार से अल्पबहुत्व 1. एक समय में एक-एक सिद्ध हुए, सबसे अधिक। 2. एक समय में दो-दो सिद्ध हुए, उनसे स्वल्प। 3. एक समय में तीन-तीन सिद्ध हुए, उनसे स्वल्प। 4. एक समय में चार-चार यावत् 25-25 सीझे हुए सिद्ध, संख्यातगुण हीन स्वल्प।
5. इसी क्रम से 26-26 सीझे हुए सिद्ध, उनसे असंख्यात गुणा न्यून यावत् 50-50 सिद्ध हुए असंख्यात गुणा न्यून। ____6. एक समय में 51-51 सीझे हुए सिद्ध, उनसे अनन्त गुणा न्यून। इस प्रकार 108 पर्यन्त कहना।
चौथे प्रकार से अल्पबहुत्व 1. जिस स्थान से बीस ही सिद्ध हो सकते हैं, वहां से एक समय में एक-एक सीझे हुए सिद्ध, सबसे अधिक। 2. एक समय में दो-दो सीझे हुए सिद्ध, उनसे संख्यात गुणा न्यून।
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