________________
अधिक, अन्य-लिंगी और गृह-लिंगी सिद्ध होने का अन्तर उत्कृष्ट संख्याते सहस्र वर्ष का जानना चाहिए।
७: चारित्रद्वार-पूर्व भाव की अपेक्षा से सामायिक, सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यात चारित्र पालकर सिद्ध होने का अन्तर 1 वर्ष से कुछ अधिक काल का, शेष चारित्र वालों का अर्थात् छेदोपस्थापनीय और परिहारविशुद्धि चारित्र का अन्तर 18 क्रोड़ाक्रोड़ सागरोपम से कुछ अधिक का। क्योंकि ये दोनों चारित्र भरत और ऐरावत क्षेत्र में पहले और अन्तिम तीर्थंकर के समय में ही होते हैं।
८. बुद्धद्वार-बुद्ध बोधित हुए सिद्ध होने का उत्कृष्ट अन्तर 1 वर्ष से कुछ अधिक का, शेष प्रत्येक बुद्ध तथा साध्वी से प्रतिबोधित हुए सिद्ध होने का संख्याते हजार वर्ष का, स्वयं-बुद्ध का अन्तर पृथक्त्व सहस्र पूर्व का जानना चाहिए।
९. ज्ञानद्वार-मति श्रुत ज्ञान से केवलज्ञान प्राप्त करके सिद्ध होने वालों का अन्तर पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण। मति, श्रुत, अवधिज्ञान से केवल ज्ञान पाने वाले सिद्ध होने का अन्तर वर्ष से कुछ अधिक। मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव ज्ञान से केवल ज्ञान प्राप्त कर सिद्ध होने वालों का उत्कृष्ट अन्तर संख्यात सहस्र वर्ष का जानना चाहिए।
१०. अवगाहनाद्वार-जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना वाले का अन्तर यदि कल्पना से 14 राजूलोक को घन बनाया जाए तो सात राजूलोक होता है। उसमें से एक प्रदेश की श्रेणी सात राजू की लम्बी है, उसके असंख्यातवें भाग में जितने आकाश प्रदेश हैं, उन्हें यदि समय-समय में एक-एक आकाशप्रदेश के साथ अपहरण किया जाए तो उन्हें रिक्त होने में
जितना काल लगे, उतना उत्कृष्ट अन्तर पड़े। मध्यम अवगाहना वालों का उत्कृष्ट अन्तर एक • वर्ष से कुछ अधिक का अन्तर पड़े। जघन्य अन्तर सर्वस्थान में एक समय का।
११. उत्कृष्ट द्वार-सम्यक्त्व से प्रतिपाति हुए बिना सिद्ध होने का अन्तर सागरोपम का असंख्यातवां भाग, संख्यातकाल तथा असंख्यातकाल के प्रतिपाति हुए सिद्ध होने वालों का अन्तर उत्कृष्ट संख्याते हजार वर्ष का, तथा अनन्तकाल प्रतिपाति हुए सिद्ध होने वालों का अन्तर 1 वर्ष से कुछ अधिक। यह उत्कृष्ट अन्तर है, जघन्य सब स्थान में एक समय का।
१२. अनुसमयद्वार-दो समय से लेकर आठ समय तक निरन्तर सिद्ध होते हैं।
१३. गणनाद्वार-एकाकी सिद्ध हो या अनेक उत्कृष्ट संख्याते हजार वर्ष का अन्तर। .... १४. अल्पबहुत्वद्वार-पूर्ववत्।
७. भावद्वार भाव 6 होते हैं-औदयिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक, पारिणामिक और सन्निपातिक। सर्व स्थानों में क्षायिक भाव से सिद्ध होते हैं। इसमें 15 उपद्वार नहीं घटाए हैं, इनका विवरण पूर्ववत् समझना चाहिए।
- * 261 * -