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________________ ८. अल्पबहुत्वद्वार सिद्धों में सब से थोड़े वे हैं जो ऊर्ध्वलोक में 4 सिद्ध होते हैं। हरिवास आदि अकर्मभूमि क्षेत्रों में 10 सिद्ध होते हैं। वे उनसे संख्यात गुणा हैं। उन की अपेक्षा स्त्री आदि से 20 सिद्ध होते हैं। वे संख्यात गुणा, क्योंकि साध्वी का साहरण नहीं होता। उन से पृथक्-पृथक् विजयों में तथा अधोलोक में 20 सिद्ध हो सकते हैं, वे संख्यात गुणा होते हैं। उनसे 108 सिद्ध हुए संख्यात गुणा हैं। यह अनन्तर सिद्ध केवलज्ञान का थोकड़ा समाप्त हुआ। परम्परसिद्ध केवलज्ञान का थोकड़ा जिन्हें सिद्ध हुए दो समय से लेकर अनन्त समय हो गए हैं, उन्हें परम्पर सिद्ध कहते हैं। उनका द्रव्य प्रमाण सात द्वारों में तथा 15 उपद्वारों में अनन्त कहना, परन्तु इनका अन्तर नहीं कहना, क्योंकि काल अनन्त है। सर्व क्षेत्रों में से अनन्त जीव सिद्ध हुए हैं। वे सिद्ध बहुतों की अपेक्षा अनादि हैं। अल्पबहुत्वद्वार १. क्षेत्रद्वार 1. समुद्र से सिद्ध हुए सब से थोड़े, द्वीप सिद्ध उनसे संख्यात गुणा। 2. जल से सिद्ध हुए सब से थोड़े, स्थल से सिद्ध हुए संख्यात गुणा। 3. ऊर्ध्वलोक से सिद्ध हुए सबसे थोड़े, अधोलोक से सिद्ध हुए उनसे संख्यात गुणा। 4. तिरछे लोक से सिद्ध हुए उन से संख्यात गुणा। उक्तं च- “सामुद्द-द्दीव, जल-थल, दुण्ह, दुण्हं तु थोव संखगुणा। उड्ढ अह तिरियलोए, थोवा संखगुणा संखा ॥" ___ 1. लवण समुद्र से सिद्ध हुए सब से थोड़े, कालोदधि समुद्र से सिद्ध हुए उनसे संख्यात गुणा। __2. उन से जम्बूद्वीप से सिद्ध हुए संख्यात गुणा, उनसे धातकीखण्ड से सिद्ध हुए, संख्यात गुणा। 3. उन से पुष्करार्द्ध द्वीप से सिद्ध हुए संख्यात गुणा। 1. समणीमवगयवेयं, परिहार पुलायमप्पमत्तयं। चउदसपुव्विं जिण आहारगं च, नो कोई साहरन्ति । भाव-साध्वी, अवेदी, परिहारविशुद्धचारित्री, पुलाकलब्धिमान, अप्रमत्त-संयत, चतुर्दशपूर्वधर, तीर्थंकर और आहारकलब्धि सम्पन्न इन का कोई साहरण नहीं कर सकता। - 262* -
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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