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२. कालद्वार -जन्म की अपेक्षा से -5 भरत, 5 ऐरावत में अन्तर पड़े तो 18 कोटाकोटि सागरोपम से कुछ न्यून', क्योंकि उत्सर्पिणी काल में चौथे आरक के आदि में 24वें तीर्थंकर का शासन संख्यात काल तक चलता है, तदनु विच्छेद हो जाता है। अवसर्पिणी काल के तीसरे आरे के अन्तिम भाग में पहले तीर्थंकर उत्पन्न होते हैं, उनका शासन तीसरे आरे में एक लाख पूर्व तक चलता है, इस कारण न्यून कहा है। उस शासन में से सिद्ध हो जाते हैं, उसके व्यवच्छेद होने पर उस क्षेत्र में जन्मे हुए सिद्ध नहीं हो सकते। साहरण की अपेक्षा से उत्कृष्ट अन्तर संख्यात हजार वर्ष का है।
३. गतिद्वार - नरक से निकले हुए सिद्ध होने का उत्कृष्ट अन्तर पृथक्त्व सहस्र वर्ष का, तिर्यंच से निकले हुए सिद्धों का अन्तर पृथक्त्व 100 वर्ष का, तिर्यंची और सुधर्म - ईशान देवलोक के देवों को छोड़कर शेष सभी देवों से आए हुए सिद्धों का अन्तर 1 वर्ष कुछ अधिक, एवं मानुषी का अन्तर, स्वयं बुद्ध होने का संख्यात हजार वर्ष का । पृथ्वी, पानी, वनस्पति, सौधर्म-ईशान देवलोक के देव, और दूसरी नरक से निकले हुए जीवों के सिद्ध होने का उत्कृष्ट अन्तर हजार वर्ष का होता है, जघन्य सर्व स्थानों में एक समय का
जानना ।
४. वेदद्वार - पुरुषवेदी से अवेदी होकर सिद्ध होने का उत्कृष्ट अन्तर वर्ष से कुछ अधिक, किन्तु स्त्री और नपुंसक से सिद्ध होने वालों का उत्कृष्ट अन्तर संख्यात हजार वर्ष का है। पुरुष मरकर पुन: पुरुष बनकर सिद्ध होने का उत्कृष्ट अन्तर वर्ष से कुछ अधिक है। शेष आठ भांगों के प्रत्येक भांगे के अनुसार संख्यात हजार वर्षों का अन्तर है। प्रत्येक बुद्ध कभी इतना ही अन्तर है । जघन्य सर्व स्थानों में एक समय का है।
५. तीर्थंकरद्वार-तीर्थंकर का मुक्ति जाने का उत्कृष्ट अन्तर पृथक्त्व हजार पूर्व, और स्त्री तीर्थंकर का उत्कृष्ट अनन्त काल, अतीर्थंकरों का उत्कृष्ट अन्तर वर्ष से अधिक, नोती सिद्धों का संख्यात हजार वर्ष (नोतीर्थ प्रत्येक बुद्ध को कहते हैं) । जघन्य अन्तर सर्व स्थानों में एक समय का। क्योंकि कहा भी है
"पुव्वसहस्सपुहुत्तं, तित्थगर - अणन्तकाल तित्थगरी । णो तित्थगरावासाहिगन्तु, सेसेसु संख समा ॥"
६. लिंगद्वार-स्वलिंगी सिद्ध होने का अन्तर जघन्य 1 समय, उत्कृष्ट 1 वर्ष कुछ
1. उत्सर्पिणी का चौथा आरा दो कोटाकोटि सागरोपम का पांचवां आरा तीन कोटाकोटि सागरोपम का, छठा आरा चार कोटाकोटि सागरोपम का है। तथा अवसर्पिणी का पहला आरा 4 कोटाकोटि सागरोपम का, दूसरा तीन कोटाकोटि सागरोपम का, तीसरा दो कोटाकोटि सागरोपम का है, यों सब 18 कोटाकोटि सागरोपम हुए, इसमें कुछ न्यून काल तीर्थंकर की उत्पति का है।
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