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________________ पण्डुक वन और लवण समुद्र में निरन्तर दो समय तक सीझें, ऊर्ध्वलोक में निरन्तर चार समय तक सिद्ध हो सकते हैं। २. कालद्वार-प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के तीसरे तथा चौथे आरे में निरन्तर आठ-आठ समय तक, शेष आरकों में 4-4 समय तक निरन्तर सिद्ध हो सकते हैं। ३. गतिद्वार-देवगति से आए हुए उत्कृष्ट आठ समय तक, शेष तीन गतियों से चार-चार समय तक निरन्तर सिद्ध हो सकते हैं। ४. वेदद्वार-जो पूर्वजन्म में भी पुरुष, इस भव में भी पुरुष हों, वे इस प्रकार उत्कृष्ट 8 समय तक, शेष आठ भागों में 4 समय तक निरन्तर सिद्ध हो सकते हैं। ५. तीर्थद्वार-किसी भी तीर्थंकर के शासन में उत्कृष्ट आठ समय तक तथा पुरुष तीर्थंकर और स्त्री तीर्थंकर निरन्तर दो समय तक सिद्ध हो सकते हैं, अधिक नहीं। ६. लिंगद्वार-स्वलिंग में आठ समय तक, अन्यलिंग में चार समय तक, गृहलिंग में उत्कृष्ट निरंतर 2 समय तक सिद्ध हो सकते हैं। ७. चारित्रद्वार-जिन्होंने क्रमशः पांच चारित्र पाले हैं, वे उत्कृष्ट चार समय तक, शेष तीन या चार चारित्र की आराधना करने वाले उत्कृष्ट आठ समय तक निरन्तर सिद्ध हो सकते ... ८. बुद्धद्वार-बुद्ध बोधित आठसमय तक, स्वयंबुद्ध दो समय तक, साधारण साधु या साध्वी के द्वारा प्रतिबुद्ध हुए चार समय तक निरन्तर सीझें। ९. ज्ञानद्वार-मति और श्रुत ज्ञान से केवली हुए दो समय तक, मति-श्रुत-मनःपर्यवज्ञान से केवली हुए चार समय तक, मति-श्रुत, अवधि-मनःपर्यवज्ञान से केवली हुए आठ समय तक निरन्तर सिद्ध हो सकते हैं। १०. अवगाहनाद्वार-उत्कृष्ट अवगाहना वाले दो समय तक, मध्यम अवगाहना वाले निरन्तर आठ समय तक, जघन्य अवगाहना वाले दो समय तक निरन्तर सिद्ध हो सकते हैं। ११. उत्कृष्टद्वार-अप्रतिपाति सम्यक्त्वी दो समय तक, संख्यात एवं असंख्यातकालप्रतिपाति उत्कृष्ट चार समय तक, अनन्तकाल प्रतिपाति सम्यक्त्वी उत्कृष्ट आठ समय तक निरन्तर सिद्ध हो सकते हैं। (शेष चार उपद्वार घटित नहीं होते) ६. अंतरद्वार सिद्धस्थान में सिद्ध होने का कितना अन्तरा पड़े ? १. क्षेत्रद्वार-समुच्चय अढाई द्वीप में विरह जघन्य 1 समय का और उत्कृष्ट 6 मास का। जम्बूद्वीप के महाविदेह और धातकीखण्ड के महाविदेह से उत्कृष्ट पृथक्त्व (2 से 9 तक) वर्ष का, पुष्करार्द्धद्वीप में एक वर्ष से कुछ अधिक काल का अन्तर पड़ सकता है। * 259 *
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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