________________
हुई, उन्हें भी अनायास ज्ञान हो जाए और साथ ही उनकी अभिरुचि संयम और तप की ओर विशेष आकृष्ट हों, इसी दृष्टिकोण को लक्ष्य में रखकर गौतम स्वामी ने भगवान से प्रश्न किए हों, ऐसा संभव है। ___ इससे यह भी ध्वनित होता है कि यदि ज्ञानी गुरुदेव प्रत्यक्ष में हों तो कुछ न कुछ सीखते रहना चाहिए। उनके निकटस्थ शिष्य को विनीत बनकर ही ज्ञानवृद्धि के लिए पूछ-ताछ करते रहना चाहिए। प्रश्न करते हुए गौतम स्वामी अनेकान्तवाद को भूले नहीं और भगवान ने जो उत्तर दिया, वह भी अनेकान्तवाद की शैली से ही दिया । अतः प्रश्नकर्ता को प्रश्न करते समय और उत्तरदाता को उत्तर देते समय अनेकान्तवाद का आश्रय लेकर ही संवाद करना चाहिए, इसी में सबका हित निहित है।
मूलम्-जइ मणुस्साणं, किं समुच्छिम-मणुस्साणं, गब्भवक्कंतियमणुस्साणं? गोयमा! नो समुच्छिम-मणुस्साणं, गब्भवक्कंतिय- मणुस्साणं उप्पज्जइ।
छाया-यदि मनुष्याणां, किं सम्मूर्छिम-मनुष्याणां, गर्भव्युत्क्रान्तिक-मनुष्याणां(वा) उत्पद्यते? गौतम ! नो सम्मूर्छिम-मनुष्याणां, गर्भव्युत्क्रान्तिक-मनुष्याणामुत्पद्यते।
-पदार्थ-जइ-यदि, मणुस्साणं-मनुष्यों को उत्पन्न होता है तो, किं-क्या, समुच्छिम. समूर्छिम, मणुस्साणं-मनुष्यों को अथवा, गब्भवक्कंतिय-गर्भव्युत्क्रान्तिक, मणुस्साणं-मनुष्यों
को? गोयमा ! गौतम, नो समुच्छिम-मणुस्साणं-समूर्छिम मनुष्यों को नहीं, गब्भवक्कंतियगर्भव्युत्क्रान्तिक, मणुस्साणं-मनुष्यों को, उप्पज्जइ-उत्पन्न होता है।
भावार्थ-यदि.मनुष्यों को उत्पन्न होता है, तो क्या समूर्छिम-(जो गर्भज मनुष्यों के मलादि में पैदा हों) मनुष्यों को अथवा गर्भव्युत्क्रान्तिक-(जो गर्भ से पैदा हों) मनुष्यों को? गौतम ! समूर्छिम मनुष्यों को नहीं, गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों को उत्पन्न होता है। - टीका-सर्वप्रथम भगवान् महावीर ने गौतम स्वामी के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा-मन:पर्यव ज्ञान मनुष्यों को हो सकता है, मनुष्येतर देव आदि को नहीं। जब प्रश्न विकल्प से किया जा रहा है, तब उत्तर भी विधि और निषेध रूप से दिया जा रहा है, जैसे कि प्रस्तुत सूत्र में गौतम स्वामी ने प्रश्न किया कि मनःपर्यव ज्ञान यदि मनुष्य को ही उत्पन्न हो सकता है, तो मनुष्य दो प्रकार के होते हैं, जैसे कि समूर्छिम और गर्भज, इनमें से मनःपर्यव ज्ञान किसको उत्पन्न हो सकता है? इसका उत्तर देते हुए प्रभु वीर ने कहा-गौतम ! गर्भज मनुष्यों को उत्पन्न हो सकता है, समूर्छिम मनुष्यों को नहीं। समूर्छिम मनुष्य उन्हें कहते हैं, जो गर्भज मनुष्य के मल-मूत्र आदि अशुचि से उत्पन्न हों। उनका सविशेष वर्णन प्रज्ञापना सूत्र के पहले पद में निम्न प्रकार से किया है, जैसे कि
* 223