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________________ से प्राप्ति हो सकती है, क्योंकि गुणप्रत्यय भी इस की उत्पत्ति में एक मुख्य कारण है। ।। सूत्र 16 ।। अवधिज्ञान-विषयक उपसंहार मूलम् - १. ओही भवपच्चइओ, गुणपच्चइओ य वण्णिओ एसो ( दुबिहो) । तस्स य बहू विगप्पा, दव्वे खित्ते अ काले य ॥ ६३ ॥ छाया-१. अवधिर्भवप्रत्ययिको, गुणप्रत्ययिकश्च वर्णित एषः (द्विविधः ) तस्य च बहुविकल्पा, द्रव्ये क्षेत्रे च काले च ॥ ६३ ॥ पदार्थ-एसो-यह, ओही- अवधिज्ञान, भवपच्चइओ - भवप्रत्ययिक, य-और, गुणपच्चइओ - गुणप्रत्ययिक, दुविहो-दो प्रकार का, वण्णिओ-वर्णन किया गया है । य-और तस्स - उसके भी, दव्वे- द्रव्य, खित्ते - क्षेत्र, काले-काल, अ-अ - और, य- भावरूप से, बहू विगप्पा - बहुत विकल्प हैं। भावार्थ - यह पूर्वोक्त अवधिज्ञान - भवप्रत्ययिक और गुणप्रत्ययिक दो प्रकार का वर्णन किया गया है और उसके भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावविषयक बहुत से विकल्प-भेद कथन किए गए हैं। टीका - इस संग्रह गाथा में अवधिज्ञान विषयक पूर्वोक्त भेद-प्रभेदों का उल्लेख संक्षेप से किया गया है। अवधिज्ञान के भवप्रत्ययिक और गुणप्रत्ययिक, इस प्रकार दो भेद प्रदर्शित किए गए हैं। गुणप्रत्ययिक के छः भेदों में प्रत्येक के अनेक विकल्पों का निर्देश किया गया है। तथा द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट विषय का ही उल्लेख किया है। मध्यम विषय के असंख्यात भेद बनते हैं। गाथा में आए हुए 'य' शब्द से भाव अर्थात् पर्याय ग्रहण करनी चाहिए। पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस, और आठ स्पर्श इनमें उतार-चढ़ाव तथा परिवर्तन को पौद्गलिक पर्याय कहते हैं । अवधिज्ञानी पुद्गल की अनन्त पर्यायों को जानता है, किन्तु सर्व पर्यायों को नहीं। वह सर्व द्रव्यों को जानता है तथा देखता भी है, परन्तु सर्व पर्याय अवधिज्ञानी का विषय नहीं है । अबाह्य-बाह्य अवधि मूलम् - २. नेरइय देवतित्थंकरा य, ओहिस्सऽबाहिरा हुंति । पासंति सव्वओ खलु, सेसा देसेण पाति ॥ ६४ ॥ से त्तं ओहिनाणपच्चक्खं । 220
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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