SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्षेत्र से अंगुल का, संखिज्जा-संख्यातवां भाग देखे तो काल से भी अंगुल का संख्यातवां भाग देखे। अंगुल-यदि अंगुल प्रमाण देखे तो काल से, आवलिअंतो-आवलिका के अन्दर-अन्दर देखे। यदि काल से, आवलिया-आवलिका को देखे तो क्षेत्र से, पुहुत्तं-पृथक्त्व अंगुल-अंगुल को देखे। भावार्थ-क्षेत्र और काल के आश्रित-अवधिज्ञानी क्षेत्र से अंगुल-(उत्सेध या प्रमाणांगुल) के असंख्यातवें भाग को देखता है तो काल से भी आवलिका का असंख्यातवां भाग देखे। दोनों में ही अर्थात् यदि क्षेत्र से अंगुल के संख्यातवें भाग को देखता है तो काल से भी आवलिका का संख्यातवां भाग जानता है। यदि अंगुल प्रमाण देखे तो काल से आवलिका से कुछ कम देखे और यदि सम्पूर्ण आवलिका प्रमाण देखे तो क्षेत्र से अंगुल-पृथक्त्व अर्थात् २ से लेकर ९ अंगुल पर्यन्त देखे। मूलम्-४. हत्थम्मि मुहुत्तंतो, दिवसंतो गाउअम्मि बोद्धव्वो । जोयण दिवसपुहुत्तं, पक्खंतो पन्नवीसाओ ॥ ५८ ॥ छाया-४. हस्ते मुहूर्तान्तो, दिवसान्तो गव्यूते-बर्बोद्धव्यः ।। योजनदिवसपृथक्त्वं, पक्षान्तः पञ्चविंशतिः ॥५८॥ :: पदार्थ-यदि हत्थम्मि-क्षेत्र से हस्त मात्र देखे तो काल से, मुहुत्तंतो-मुहूर्त से न्यून देखता है, और यदि काल से, दिवसंतो-दिवस से कुछ कम देखता है तो क्षेत्र से, गाउअम्मिएक योजन पर्यन्त देखता है, बोद्धव्वो-ऐसा जानना चाहिए, यदि क्षेत्र से, जोयण-योजन प्रमाण देखता है तो काल से, दिवसपुहुत्तं-दिवस पृथक्त्व देखता है, यदि काल से, पक्खंतोकिञ्चित् न्यून पक्ष को देखता है तो क्षेत्र से, पन्नवीसाओ-पच्चीस योजन परिमाण पर्यन्त देखता है। . ___ भावार्थ-अगर क्षेत्र से हस्त पर्यन्त देखे तो काल से मुहूर्त से कुछ न्यून देखता है, और यदि काल से दिन से कुछ कम देखे तो क्षेत्र से एक गव्यूति-कोस परिमाण देखता है, ऐसा जानना चाहिए। यदि क्षेत्र से योजन-चार कोस परिमित देखता है, तो काल से दिवस पृथक्त्व-दो से नौ दिन परिमाण देखता है और यदि काल से किञ्चित् न्यून पक्ष देखता है, तो क्षेत्र से २५ योजन परिमित क्षेत्र देखता है। मूलम्-५. भरहम्मि अड्ढमासो, जंबुद्दीवम्मि साहिओ मासो । वासं च मणुयलोए, वासपुहुत्तं च रुयगम्मि ॥ ५९ ॥ छाया-५. भरतेऽर्द्धमासोः जम्बूद्वीपे साधिको मासः । वर्षञ्च मनुष्यलोके, वर्षपृथक्त्वञ्च रुचके ॥ ५९ ॥ * 207*
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy