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के चारों ओर सब दिशाओं में सर्व प्रकार से घूमता हुआ, उस ज्योति से प्रकाशित क्षेत्र को ही देखता है, अन्यत्र न जानता है और न देखता है। इसी प्रकार अनानुगामिक अवधिज्ञान जिस क्षेत्र में उत्पन्न होता है, उसी स्थान पर स्थित संख्यात वा असंख्यात योजन स्वावगाढ़ क्षेत्र से सम्बन्धित अथवा असम्बन्धित योजनों पर्यंत अवगाहित द्रव्यों को जानता व देखता है, अन्यत्रगत नहीं देखता है। इसी को अनानुगामिक अवधिज्ञान कहते हैं ॥ सूत्र ११ ॥ ___टीका-प्रस्तुत सूत्र में अनानुगामिक अवधिज्ञान का उल्लेख किया गया है। जैसे कोई व्यक्ति एक बहुत बड़े ज्योतिः स्थान के आस-पास बैठकर या उसके चारों ओर घूमता हुआ, जहां तक ज्योति का प्रकाश पड़ता है, वहां तक वह उस प्रकाश से प्रकाशित पदार्थों को भली-भांति जानता है और देखता है। यदि वह पुरुष ज्योतिःस्थान से उठकर किसी अन्य स्थान पर चला जाए, तो वह ज्योति उसके साथ नहीं जाती। इसी कारण वह अन्यत्र गया हुआ पुरुष अन्धकार में पड़े पदार्थों को नहीं देख सकता। ठीक इसी प्रकार जिस आत्मा को अनानुगामिक अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ है, वह जिस क्षेत्र में उत्पन्न हुआ है, या जिस स्थान विशेष में उत्पन्न हुआ है, या जिस भव में उत्पन्न हुआ है, वह उस अनानुगामिक अवधिज्ञान के द्वारा, उस क्षेत्र में रहते हुए अथवा उस स्थान में, या उस भव में रहते हुए संख्यात या असंख्यात योजनों तक रूपी पदार्थों को जान व देख सकता है, अन्यत्र चले जाने पर जान और देख नहीं सकता।
सूत्रकार ने सूत्र में 'सम्बद्ध' और 'असम्बद्ध' शब्दों का जो प्रयोग किया है उसका भाव यह है कि जब स्वावगाढ़ क्षेत्र से निरन्तर जितने पदार्थों को जानता है, वे सम्बद्ध हैं और बीच में अन्तर रखकर आगे रहे हुए जो पदार्थ हैं, वे असम्बद्ध हैं। उन पदार्थों को भी वह अवधिज्ञान के द्वारा जानता है। इस विषय को व्यावहारिक विधि से समझने में सुविधा रहेगी। जैसे एक व्यक्ति प्रकाश स्तम्भ के पास खड़ा है, वह उस प्रकाश से सम भूमि में तो निरन्तर देख सकता है। यदि कुछ दूरी पर निम्न स्थल आ जाए और तदनन्तर उन्नत प्रदेश आ जाए, तब देखने वाले ने असम्बद्ध रूप से देखा, क्योंकि बीच में गर्त, नदी, खाई वा निम्न प्रदेश
आ गए। उस प्रकाश स्तम्भ का प्रकाश चारों ओर समतल भूमि और ऊंची भूमि पर तो पड़ता है, किन्तु निम्न तथा प्रतिबन्धक स्थानों पर अन्धकार ही होता है, जिससे सम्यक्तया पदार्थों को नहीं जान व देख सकता। यही आशय सम्बद्ध और असम्बद्ध शब्दों का व्यक्त किया गया है। जैसे कि कहा भी है
___“अवधिर्हि कोऽपि जायमानः स्वावगाढ़देशादारभ्य निरन्तरं प्रकाशयति, कोऽपि पुनरपान्तरालेऽन्तरं कृत्वा परतः प्रकाशयति, तत उच्यते-सम्बद्धान्यसम्बद्धानि वेति।"
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