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. अनानुगामिक अवधिज्ञान मूलम्-से किं तं अणाणुगामियं ओहिनाणं ? अणाणुगामियं ओहिनाणं-से जहानामए केइ पुरिसे एगं महंतं जोइट्ठाणं काउं तस्सेव जोइट्ठाणस्स परिपेरंतेहिं परिपेरंतेहिं, परिघोलेमाणे परिघोलेमाणे, तमेव - जोइट्ठाणं पासइ, अन्नत्थगए न जाणइ न पासइ, एवामेव अणाणुगामियं ओहिनाणं जत्थेव समुप्पज्जइ, तत्थेव संखिज्जाणि वा असंखिज्जाणि वा, संबद्धाणि वा असंबद्धाणि वा जोयणाइं जाणइ पासइ, अन्नत्थगए ण जाणइ पासइ, से त्तं अणाणुगामियं ओहिनाणं ॥ सूत्र ११॥
छाया-अथ किं तदनानुगामिकमवधिज्ञानम् ? अनानुगामिकमवधिज्ञानं-स यथानामकः कश्चित्पुरुष एकं महत्-ज्योतिःस्थानं कृत्वा तस्यैव ज्योतिःस्थानस्य परिपर्यन्तेषु २, परिघूर्णन् २ तदेव ज्योतिःस्थानं पश्यति, अन्यत्र गतान् न जानाति न पश्यति, एवमेवाऽनानुगामिकमवधिज्ञानं यत्रैव समुत्पद्यते तत्रैव संख्येयानि वा, असंख्येयानि वा सम्बद्धानि वासम्बद्धानि वा, योजनानि जानाति पश्यति, अन्यत्र गतान्न जानाति पश्यति तदेतदनानुगामिकमवधिज्ञानम् ॥ सूत्र ११ ॥
पदार्थ-से किं तं अणाणुगामियं ओहिनाणं ?-अथ वह अनानुगामिक अवधिज्ञान क्या है ?, अणाणुगामियं-अनानुगामिक, ओहिनाण-अवधिज्ञान, से जहानामएजैसे-यथानामक, केइ पुरिसे-कोई पुरुष, एगं-एक, महंत-महान्-बड़ा, जोइट्ठाणंज्योति:स्थान, काउं-करके तथा, तस्सेव-उसी, जोइट्ठाणस्स-ज्योति:स्थान के, परिपेरंतेहिं २-सर्व दिशाओं के पर्यन्त में, परिघोलेमाणे २-सर्व प्रकार से परिभ्रमण करता हुआ, तमेव-उसी ज्योतिःस्थान से प्रकाशित क्षेत्र को, पासइ-देखता है, अन्नत्थगए-अन्यत्रगत, न-नहीं, जाणइ-जानता-न ही, पासइ-देखता है, एवामेव-इसी प्रकार, अणाणुगामियंअनानुगामिक, ओहिनाणं-अवधिज्ञान, जत्थेव-जहां, समुप्पज्जइ-समुत्पन्न होता है, तत्थेव-वहां पर ही, संखेन्जाणि वा-संख्यात वा, अंसखेज्जाणि वा-असंख्यात, संबद्धाणि वा-स्वावगाढ़ क्षेत्र से सम्बन्धित अथवा, असंबद्धाणि वा-असंबन्धित, जोयणाई-योजनों पर्यन्त अवगाहित द्रव्यों को, जाणइ-जानता है, पासइ-देखता है, अन्नत्थगए-अन्यत्रगत, न पासइ-नहीं देखता है, से तं-यह, अणाणुगामियं-अनानुगामिक, ओहिनाणं-अवधिज्ञान है।
भावार्थ-शिष्य ने पूछा-भगवन् ! वह अनानुगामिक अवधिज्ञान किस प्रकार है ?
गुरुजी उत्तर में बोले-भद्र ! अनानुगामिक अवधिज्ञान, जैसे-यथा नाम बाला कोई व्यक्ति एक बहुत बड़ा अग्नि का स्थान बनाकर उसमें अग्नि को दीप्त करके, उस आग
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