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से किं तं मग्गओ अंतगयं?-वह मार्ग से अंतगत अवधिज्ञान किस प्रकार है ?, मग्गओ अंतगयं-मार्ग से अंतगत, से-वह विवक्षित, जहानामए-यथानाम, केइ पुरिसेकोई पुरुष, उक्कं वा-उल्का अथवा, चडुलियं वा-अग्रभाग से जलती हुई तृणपूलिका, अथवा, अलायं-वा-अग्रभाग से जलता हुआ काठ, अथवा, मणिं वा-मणि, अथवा, पईवं वा-प्रदीप, अथवा, जोइं वा-ज्योति को, मग्गओ-मार्ग से, काउं-करके, अणुकड्ढेमाणे २-अनुकर्षण करता हुआ, गच्छिज्जा-जाए, से तं मग्गओ अंतगयं-इस प्रकार मार्ग से अन्तगत अवधिज्ञान को समझना चाहिए। . से किं तं पासओ अंतगयं ?-अथ वह दोनों पार्श्वगत अवधिज्ञान किस प्रकार से है ?, पासओ अंतगयं-पार्यों से अन्तगत अवधिज्ञान, से जहानामए-जैसे अमुक, केइ पुरिसे-कोई पुरुष, उक्कं वा-उल्का अथवा, चडुलियं वा-अग्रभाग से जलती हुई पूलिका, अलायं वा-अग्रभाग से जलता हुआ काठ, मणिं वा-मणि, अथवा, पईवं वा-प्रदीप, जोइंवा-अथवा ज्योति को, पासओ-पाश्र्यों से, अणुकड्ढेमाणे २-अनुकर्षण करता हुआ, गच्छिज्जा-जाए, जैसे वह दोनों पार्यों में पदार्थों को देखता है, सेत्तं पासओ अंतगयं-उसे पार्श्वगत-अन्तगत अवधिज्ञान कहा है, से त्तं अंतगयं-इस प्रकार अन्तगत अवधिज्ञान का वर्णन किया गया है।
से किं तं मझगयं?-वह मध्यगत अवधि क्या है ?, मज्झगयं-मध्यगत, से जहानामएजैसे यथानामक, केइ पुरिसे-कोई व्यक्ति, उक्कं वा-उल्का को, चडुलियं वा-अथवा तृण की पूलिका को, अलायं वा-जलते हुए काष्ठ को, मणिं वा-मणि को, पईवं वा-प्रदीप को, अथवा, जोइंवा-ज्योति को, मत्थए काउं-मस्तक पर रखकर, समुव्वहमाणे २-वहन करता हुआ, गच्छिज्जा-जावे, से त्तं मझगयं-वह मध्यगत अवधिज्ञान है।
भावार्थ-शिष्य ने पूछा-भगवन् ! वह आनुगामिक अवधिज्ञान कितने प्रकार का है ? गुरु ने उत्तर में कहा-हे भद्र ! आनुगामिक अवधिज्ञान दो प्रकार का है, जैसे-अन्तगत
और मध्यगत। . . . शिष्य ने फिर पूछा-वह अन्तगत अवधिज्ञान कौन-सा है ?
गुरु ने उत्तर दिया-अन्तगत अवधि तीन प्रकार का है, जैसे-१. आगे से अन्तगत, २. पीछे से अन्तगत और ३. दोनों पावों से अन्तगत।
शिष्य ने फिर प्रश्न किया-गुरुवर ! वह आगे से अन्तगत अवधि किस प्रकार का है? उत्तर देते हुए गुरुदेव बोले-जैसे कोई व्यक्ति उल्का अर्थात् दीपिका अथवा घास-फूस
की पूलिका जो आगे से जल रही हो अथवा जलते हुए काष्ठ, मणि, प्रदीप, अथवा किसी भाजन विशेष में जलती हुई अग्नि को हाथ या दण्ड आदि से आगे करके अनुक्रम से यथा-गति चलता है और उक्त प्रकाशित वस्तुओं के द्वारा मार्ग में रहे हुए पदार्थों को देखता जाता है। इसी प्रकार पुरतो अन्तगत अवधिज्ञान भी आगे के प्रदेश में प्रकाश करता
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