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टीका-इस सूत्र में इन्द्रिय-प्रत्यक्ष का वर्णन किया गया है। शब्द श्रोत्रेन्द्रिय का विषय है। शब्द दो प्रकार का होता है, ध्वन्यात्मक और वर्णात्मक। दोनों से ही ज्ञान उत्पन्न होता है। इसी प्रकार रूप चक्षु का विषय है, गन्ध घ्राणेन्द्रिय का, रस रसनेन्द्रिय का और स्पर्श स्पर्शनेन्द्रिय का विषय है।
इस विषय में शंका उत्पन्न होती है कि स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र इस क्रम को छोड़कर श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय इत्यादि पांच इन्द्रियों का निर्देश क्यों किया? इस शंका के उत्तर में कहा जाता है कि एक कारण तो पूर्वानुपूर्वी और पश्चादनुपूर्वी दिखलाने के लिए उत्क्रम की पद्धति सूत्रकार ने अपनाई है। दूसरा कारण यह है कि जिस जीव में क्षयोपशम
और पुण्य अधिक होता है, वह पंचेन्द्रिय बनता है, उससे न्यून हो तो चतुरिन्द्रिय बनता है, जब पुण्य और क्षयोपशम सर्वथा न्यून होता है, तब एकेन्द्रिय बनता है। जब 'पुण्य और क्षयोपशम को मुख्यता दी जाती है, तब उत्क्रम से इन्द्रियों की गणना प्रारंभ होती है। जब जाति की अपेक्षा से गणना की जाती है, तब पहले स्पर्शन, रसना इस क्रम को सूत्रकारों ने अपनाया है। पांच इन्द्रियों और छठा मन, ये सब श्रुतज्ञान में निमित्त हैं। परन्तु श्रोत्रेन्द्रिय श्रुतज्ञान में प्रधान कारण है। अतः सर्वप्रथम श्रोत्रेन्द्रिय का नाम निर्देश किया है। स्वयं पढ़ने में चक्षुरिन्द्रिय भी सहयोगी है। अतः सूत्रकार ने-क्षयोपशम और पुण्योदय की प्रबलता को लक्ष्य में रखकर श्रोत्रेन्द्रिय से क्रम अपनाना अधिक उपयोगी समझा है।
मति और श्रुतज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से भावेन्द्रिय और शुभ नाम कर्मोदय से द्रव्येन्द्रियां प्राप्त होती हैं। वीर्य और योग से उन्हें व्याप्त किया जाता है। यह हुआ इन्द्रियप्रत्यक्ष का वर्णन ।। सूत्र 4 ।।
पारमार्थिक प्रत्यक्ष के तीन भेद, मूलम्-से किं तं नोइंदियपच्चक्खं ? नोइंदियपच्चक्खं तिविहंपण्णत्तं, तं जहा-१. ओहिनाणपच्चक्खं २. मणपज्जवनाणपच्चक्खं ३. केवलनाणपच्चक्खं ॥ सूत्र ५ ॥
छाया-अथ किं तन्नोइन्द्रियप्रत्यक्षं ? नोइन्द्रियप्रत्यक्ष त्रिविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-१. अवधिज्ञानप्रत्यक्षं, २. मनःपर्यवज्ञानप्रत्यक्षं, ३. केवलज्ञानप्रत्यक्षम् ॥ सूत्र ५ ॥
भावार्थ-शिष्य ने प्रश्न किया-गुरुदेव ! नोइन्द्रिय-बिना किसी इन्द्रिय, मनरूप बाहर के निमित्त की सहायता के, साक्षात् आत्मा से होने वाला ज्ञान कितने प्रकार का है ? गुरुदेव ने उत्तर दिया-वह नोइन्द्रियप्रत्यक्ष ज्ञान तीन प्रकार का है-१. अवधिझानप्रत्यक्ष, २. मनःपर्यवज्ञानप्रत्यक्ष, ३. केवलज्ञानप्रत्यक्ष ॥ सूत्र ५॥
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