SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलम्-से किंतं ओहिनाणपच्चक्खं ? ओहिनाणपच्चक्खंदुविहं पण्णत्तं, तं जहा-भवपंच्चइयं च खाओवसमियं च ॥ सूत्र ६ ॥ छाया-अथ किं तदवधिज्ञानप्रत्यक्षम् ? अवधिज्ञानप्रत्यक्षं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथाभवप्रत्ययिकञ्च, क्षायोपशमिकञ्च ॥ सूत्र ६॥ भावार्थ-शिष्य ने प्रश्न किया-वह अवधिज्ञानप्रत्यक्ष कितने प्रकार का है ? गुरुदेव उत्तर में बोले-वत्स ! अवधिज्ञान दो प्रकार से वर्णित है, जैसे कि-१. भवप्रत्ययिक और २. क्षायोपशमिक ॥ सूत्र ६ ॥ ___ मूलम्-से किं तं भवपच्चइयं ? भवपच्चइयं दुण्हं, तंजहा-देवाण य, नेरइयाण य ॥ सूत्र ७ ॥ ___ छाया-अथ किं तद् भवप्रत्ययिकं ? भवप्रत्ययिकं द्वयोः, तद्यथा-देवानाञ्च नैरयिकाणाञ्च ॥ सूत्र ७॥ भावार्थ-शिष्य ने प्रश्न किया-वह भवप्रत्ययिक-जन्म से होने वाला अवधिज्ञान किन को होता है ? उत्तर में गुरुदेव बोले-हे शिष्य ! वह भवप्रत्ययिक दो को होता है, जैसे कि-देवों को और नारकीय जीवों को ॥ सूत्र ७ ॥ मूलम्-से किंतं खाओवसमियं? खावोवसमियंदुण्हं, तं जहा-मणुस्साण य, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाण या को हेऊ खाओवसमियं ? खाओवसमियं तयावरणिज्जाणं कम्माणं उदिण्णाणं खएणं, अणुदिण्णाणं उवसमेणं ओहिनाणं समुप्पज्जइ ॥ सूत्र ८ ॥ छाया-अथ किं तत् क्षायोपशमिकं? क्षायोपशमिकं द्वयोः, तद्यथा-मनुष्याणाञ्च, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिजानाञ्च। को हेतु क्षायोपशमिकं , क्षायोपशमिक, तदावरणीयानां कर्मणामुदीर्णानां क्षयेण, अनुदीर्णानामुपशमेन-अवधिज्ञानं समुत्पद्यते ॥ सूत्र ८ ॥ _ पदार्थ-से किं तं खाओवसमियं ?-वह क्षायोपशमिक अवधिज्ञान किन को होता है?, खाओबसमियं-क्षायोपशमिक, दोण्ह-दो को होता है, तं जहा-जैसे, मणुस्साण-मनुष्यों को, य-और, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाण य-पञ्चेन्द्रयतिर्यञ्चों को, खाओवसमियंक्षायोपशमिक में, को हेऊ?-क्या हेतु है ?, खाओवसमियं-क्षायोपशमिक, उदिण्णाणंउदयप्राप्त, तयावरणिज्जाणं-अवधिज्ञानावरणीय, कम्माणं-कर्मों के, खएण-क्षय से, अणुदिण्णाणं-अनुदीर्ण कर्मों के, उवसमेण-उपशम से, ओहिनाणं-अवधिज्ञान, समुप्पज्जइ-उत्पन्न होता है। भावार्थ-शिष्य ने पुनः प्रश्न किया-गुरुदेव ! वह क्षायोपशमिक अवधिज्ञान किन * 187*
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy