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नो-इन्दियपच्चक्खं-इस पद में नो शब्द सर्व निषेधवाची है। क्योंकि नोइन्द्रिय मन का नाम भी है। अत:-जो प्रत्यक्ष इन्द्रिय, मन तथा आलोक आदि बाह्य साधनों की अपेक्षा नहीं रखता, जिसका सीधा सम्बन्ध आत्मा और उसके विषय से हो, उसे नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष कहते हैं। नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष का यही अर्थ सूत्रकार को अभीष्ट है, न कि मानसिक ज्ञान। . से-यह मगधदेशीय प्रसिद्ध निपात शब्द है, जिस का अर्थ, अथ होता है, अथ शब्द निम्न प्रकार के अर्थों में ग्रहण किया जाता है-“अथ, प्रक्रिया-प्रश्न-आनन्तर्य-मंगलोपन्यासप्रतिवचन-समुच्चयेष्विति, इह चोपन्यासार्थो वेदितव्यः।"
सूत्रकर्ता ने जो इन्द्रिय प्रत्यक्ष ज्ञान का कथन किया है, वह लौकिक व्यवहार की अपेक्षा से किया है, न कि परमार्थ की दृष्टि से। क्योंकि लोक में यह कहने की प्रथा है कि मैंने स्वयं आंखों से प्रत्यक्ष देखा है इत्यादि। इसी को सांव्यावहारिक प्रत्यक्ष कहते हैं, जैसे कि-यदिन्द्रियाश्रितमपरव्यवधानरहितं ज्ञानमुदयते, तल्लोके प्रत्यक्षमिति व्यवहृतम्, अपरधूमादिलिंगनिरपेक्षतया साक्षादिन्द्रियमधिकृत्य प्रवर्तनात्" इस से भी उक्त कथन की पुष्टि हो जाती है ।। सूत्र 3 ।।
सांव्यावहारिक प्रत्यक्ष के भेद मूलम्-से किं तं इंदियपृच्चक्खं ? इंदियपच्चक्खं पंचविहं पण्णत्तं, तंजहा-१.सोइंदियपच्चक्खं, २. चक्खिंदियपच्चक्खं, ३.घाणिंदियपच्चक्खं, ४. जिभिंदियपच्चक्खं, ५. फासिंदियपच्चक्खं, से त्तं इंदियपच्चक्खं ॥ सूत्र ४॥ .
छाया-अथ किं तदिन्द्रियप्रत्यक्षम् ? इन्द्रियप्रत्यक्षं पञ्चविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा- १. श्रोत्रेन्द्रियप्रत्यक्षं, २. चक्षुरिन्द्रियप्रत्यक्षं, ३. घ्राणेन्द्रियप्रत्यक्षं, ४. जिह्वेन्द्रियप्रत्यक्षं, ५. स्पर्शनेन्द्रियप्रत्यक्षं, तदेतद् इन्द्रियप्रत्यक्षम् ॥ सूत्र ४॥ - भावार्थ-शिष्य ने प्रश्न किया-भगवन् ! वह इन्द्रियप्रत्यक्ष ज्ञान कितने प्रकार का है ? आचार्य उत्तर में बोले-हे भद्र ! इन्द्रियप्रत्यक्ष पांच प्रकार का है, यथा
१. श्रोत्रेन्द्रिय-कान से होने वाला ज्ञान-श्रोत्रेन्द्रियप्रत्यक्ष, २. चक्षु-आंख से होने वाला ज्ञान-चक्षुरिन्द्रियप्रत्यक्ष, ३. घ्राण-नासिका से होने वाला ज्ञान-घ्राणेन्द्रियप्रत्यक्ष, ४. जिह्वा-रसना से होने वाला ज्ञान-जिह्वेन्द्रियप्रत्यक्ष, ५. स्पर्शन-त्वचा से होने वाला ज्ञान-स्पर्शनेन्द्रियप्रत्यक्ष यह हुआ इन्द्रियप्रत्यक्ष ज्ञान का वर्णन ॥ सूत्र ४॥
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