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भावार्थ-शिष्य गुरु से पूछता है, भगवन् ! उस प्रत्यक्ष ज्ञान के कितने भेद हैं ? उत्तर में गुरुदेव बोले-वत्स ! प्रत्यक्षज्ञान के दो भेद हैं, जैसे
१. इन्द्रिय प्रत्यक्ष और २. नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष ॥ सूत्र ३ ॥
टीका-इस सूत्र में प्रत्यक्ष ज्ञान के भेदों का वर्णन किया गया है, प्रत्यक्ष ज्ञान दो प्रकार का होता है-इन्द्रिय प्रत्यक्ष और नोइन्द्रिय प्रत्यक्षा इन्द्रिय आत्मा की वैभाविक संज्ञा है। इन्द्रिय के दो भेद हैं, द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय। द्रव्येन्द्रिय भी दो प्रकार की होती हैं, 1. निवृत्ति द्रव्येन्द्रिय और 2. उपकरण द्रव्येन्द्रिय। निर्वृत्ति का अर्थ होता है-इन्द्रियाकार रचना। वह बाह्य
और आभ्यन्तर के भेद से दो प्रकार की है। बाह्य निर्वृत्ति से इन्द्रियाकार-पुद्गल रचना ली गई है और आभ्यन्तर निवृत्ति से इन्द्रियाकार आत्म प्रदेश लिए गए हैं। उपकरण का अर्थ होता है-उपकार का प्रयोजक साधन। बाह्य और आभ्यन्तर निवृत्ति की शक्ति विशेष को उपकरणेन्द्रिय कहते हैं। सारांश यह निकला कि इन्द्रिय की आकृति को निर्वृत्ति कहते हैं और उनमें विशेष प्रकार की पौद्गलिक शक्ति को उपकरण कहते हैं। द्रव्येन्द्रियों की बाह्य आकृति सर्व जीवों की भिन्न-भिन्न प्रकार की देखी जाती है, किन्तु आभ्यन्तर निर्वृत्ति इन्द्रिय सब जीवों की समान रूप से होती है, जैसे कि प्रज्ञापना सूत्र के 15वें पद में लिखा है- “सोइन्दिए णं भन्ते! किं संठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! कलंबुयासंठाणसंठिए पण्णत्ते। चक्खिन्दिए णं भन्ते ! किं संठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! मसूरचन्दसंढाणसंठिए पण्णत्ते। पाणिन्दिए णं भन्ते ! किं संठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! अइमुत्तगंसंठाणसंठिए पण्णत्ते। जिब्भिन्दिए णं भन्ते ! किं संठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! खुरप्पसंठाणसंठिए पण्णत्ते? फासिन्दिएणं भन्ते ! किं संठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! नाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते।" __इस पाठ का सारांश इतना ही है कि श्रोत्रेन्द्रिय का संस्थान कदम्बक पुष्प के समान, चक्षुरिन्द्रिय का संस्थान मसूर और चन्द्र के समान गोल, घ्राणेन्द्रिय का आकार अतिमुक्तक के समान, रसनेन्द्रिय का संस्थान क्षुरप्र के समान और स्पर्शनेन्द्रिय का संस्थान नाना प्रकार का वर्णित है। अतः आभ्यन्तर निर्वृत्ति सब के समान ही होती है। आभ्यन्तर निर्वृत्ति से उपकरणेन्द्रिय की शक्ति विशिष्ट होती है। किसी विशेष घातक कारण के उपस्थित हो जाने पर शक्ति का उपघात हो जाता है तथा साधककारण (औषधि आदि) से शक्ति बढ़ जाती है, औषधि तथा विष का प्रभाव उपकरण इन्द्रिय तक ही हो सकता है।
भावेन्द्रिय भी दो प्रकार की होती है, जैसे कि-लब्धि और उपयोग। मति-ज्ञानावरणीय के क्षयोपशम से होने वाले एक प्रकार के आत्मिक परिणाम को लब्धि कहते हैं। शब्द, रूप आदि विषयों का सामान्य तथा विशेष प्रकार से जो बोध होता है, उसे उपयोग इन्द्रिय कहते हैं। अतः इन्द्रिय प्रत्यक्ष में द्रव्य और भाव दोनों प्रकार की इन्द्रियों का ग्रहण होता है। दोनों में से एक के अभाव होने पर इन्द्रिय प्रत्यक्ष की उपपत्ति नहीं हो सकती।