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________________ में, दुल्लभिंदाणं-इन्द्रों के भी दुर्लभ, ऐसे गुणसम्पन्न, गोविंदाणंपि-आचार्य गोविन्द जी को भी, नमो-नमस्कार हो। य-और, तत्तो-तत्पश्चात्, तवसंजमे-तप और संयम में, निच्चं-सदा ही, अनिविण्णंखेदरहित, पंडियजणसम्माणं-पण्डितजनों में सम्माननीय तथा, संजम-विहिण्j-संयम विधि के विशेषज्ञ, ऐसे गुणोपेत, भूयदिन्नं-आचार्य भूतदिन्न को, वंदामो-वंदन करता हूं। भावार्थ-अनुयोग की विपुल धारणा रखने वालों में तथा सर्वदा क्षमा और दया आदि गुणों की प्ररूपणा करने में इन्द्र के लिए भी दुर्लभ, ऐसे श्री गोविन्द आचार्य को नमस्कार हो। तत्पश्चात् तप-संयम की आराधना, पालना में प्राणान्त कष्ट या उपसर्ग होने पर भी जो खेद नहीं मानते थे, पण्डित जनों से सम्मानित, संयम विधि-उत्सर्ग और अपवाद के विशेषज्ञ इत्यादि गुणोपेत आचार्य भूतदिन को वन्दन करता हूं। ' टीका-उक्त दो गाथाओं में जितेन्द्रिय, निःशल्यव्रती, श्रीसंघ के शास्ता एवं सन्मार्ग प्रदर्शक आचार्य प्रवर__(29-30) श्री गोविन्द और भूतदिन्न, इन दोनों आचार्यों की गुणनिष्पन्न विशेषणों से स्तुति करते हुए वन्दना की गई है। जैसे-सर्व देवों में इन्द्र प्रधान होता है, वैसे ही तत्कालीन अनुयोगधर आचार्यों में गोविन्दजी भी इन्द्र के समान प्रमुखं थे। गोपेन्द्र शब्द का प्राकृत में "गोविन्द" बनता है। णिच्चं खंति-दयाणं इस पद से उनकी नित्य क्षमाप्रधान दया सूचित की गई है, क्योंकि अहिंसा की आराधना क्षमाशील व्यक्ति ही कर सकता है, दयालु ही क्षमाशील हो सकता है। अतः शान्ति और दया, ये दोनों पद परस्पर अन्योऽन्य आश्रयी हैं, एक के बिना दूसरे का भी अभाव है। समग्र आगमवेत्ता होने से इनकी व्याख्या एवं व्याख्यान-शैली अद्वितीय थी। इनके पश्चात् आचार्य भूतदिन्न हुए हैं। इनमें यह विशेषता थी कि तप-संयम की आराधना, साधना में भीषण कष्ट होने पर भी वे खेद नहीं मानते थे। इसके अतिरिक्त वे विद्वज्जनों से सम्मानित एवं सेवित थे और साथ ही संयमविधि के विशेषज्ञ थे। उपर्युक्त गाथाओं में निम्नलिखित पाठान्तरभेद देखे जाते हैं :(1) धारणिंदाणं' के स्थान पर 'धारिणंदाणं'। (2) 'दयाणं' के स्थान पर 'जुयाणं'। (3) 'दुल्लभिंदाणं' के स्थान पर 'दुल्लभिंदाणि'" * 160 * -
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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