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श्रुतसागर के पारगामी इत्यादि गुणों से युक्त आर्यमंगु आचार्य को स्तुतिकार ने भावभीनी वंदना की है। इसका फलितार्थ यह हुआ कि वन्दना और स्तुति गुणों की होती है। जैनधर्म में व्यक्ति की पूजा नहीं अपितु गुणों की पूजा होती है। भणगं-इस पद से वाचना आदि स्वाध्याय को सूचित किया है। करगं-इस विशेषण से सूत्रोक्त क्रिया-कलाप के करने की सूचना दी गई है। झरगं-ध्यातारं-इस कथन से ध्यान शब्द की सिद्धि की गई है, क्योंकि मोक्ष प्राप्त करने का मुख्य साधन ध्यान ही है। पभावगं नाणदंसणगुणाणं-इससे सिद्ध होता है कि वे ज्ञान, दर्शन और चारित्र इन तीनों गुणों के दिपाने और प्रवचन-प्रभावना करने में सिद्धहस्त थे। ज्ञान-दर्शन ये आत्मा के निजी गुण हैं, इन पर भी प्रकाश डाला गया है। सुयसागरपारगं-इस विशेषण से उन्हें आगमों के लौकिक तथा लोकोत्तरिक श्रुत के प्रखर विद्वान् सूचित किया गया है। धीरे-धीर पद से 'धिया राजत इति धीरः'-उन्हें बुद्धिमान् और समय के ज्ञाता सिद्ध किया गया है। मूलम्-वंदामि अज्जधम्म, तत्तो वंदे य भद्दगुत्तं च ।
तत्तो य अज्जवइरं, तव-नियम-गुणेहिं वइरसमं ॥ ३१ ॥ छाया- वन्दे आर्यधर्म, ततो वन्दे च भद्रगुप्तं च।
ततश्चार्यवज्रं, तपोनियमगुणैर्वजंसमम् ॥३१॥ पदार्थ-पुनः अज्जधम्म-आर्य धर्माचार्य को, य-और; तत्तो-फिर, भद्दगुत्तं-श्रीभद्र गुप्तजी को, वंदामि-वन्दना करता हूं, च-और, तत्तो-उसके बाद, तव-तप, नियम-नियम आदि, गुणेहि-गुणों से, वइर-वज्र के, सम-समान, अज्जवइरं-आर्यवज्र स्वामीजी को वन्दन करता हूं।
भावार्थ-तत्पश्चात् आचार्य श्री आर्यधर्मजी महाराज को और उनके पश्चात् आचार्य श्रीभद्रगुप्तजी महाराज को वन्दना करता हूं। उसके बाद तप-नियम आदि गुणों से सम्पन्न, वज्र के समान दृढ़ आचार्य श्रीआर्यवज्रस्वामीजी महाराज को नमन करता हूं।
टीका-इस गाथा में युगप्रधान तीन आचार्यों का क्रमशः परिचय दिया गया है
(17, 18, 19) आर्यधर्म, भद्रगुप्त और आर्य वज्रस्वामी ये तीनों आचार्य तप-नियम और गुणों से समृद्ध थे। चतुर्विध श्रीसंघ के लिए आचार्य श्रद्धास्पद होते हैं। वे स्व-कल्याण के साथ-साथ दूसरों का भी कल्याण करते हैं। वे श्रीसंघ या विश्व के लिए मार्ग-प्रदर्शन के रूप में प्रकाश-स्तम्भ होते हैं। आचार्य तीर्थंकर के पदचिन्हों पर चलते हैं तथा उनका अनुसरण श्रीसंघ करता है।
जनता पर जैसे न्यायनीतिमान राजा शासन करता है, वैसे ही आध्यात्मिक साधकों पर आचार्य देव का न्याय-नीति-सम्पन्न शासन होता है। वे मार्ग-प्रदर्शक और श्रीसंघ के रक्षक
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