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तिसमुद्दखायकित्तिं - पूर्व, दक्षिण और पश्चिम दिशा में जिनकी कीर्ति समुद्र - पर्यन्त व्याप्त हो रही है। क्योंकि इस भरत क्षेत्र की सीमा तीन दिशाओं में समुद्र - पर्यन्त है तथा उत्तर दिशा में वैताढ्य एवं हिमवान् पर्वत है, अत: वे अपनी शुभ्र कीर्ति द्वारा भरत क्षेत्र में प्रसिद्ध हो रहे थे। दूसरे चरण में यह कथन किया गया है कि
दीवसमुद्देसु गहियपेयालं - इससे सिद्ध होता है कि द्वीपसागर प्रज्ञप्ति आदि शास्त्रों के वे पूर्ण ज्ञाता होने से लोकवाद में प्रामाणिक माने जाते थे। तीसरे चरण में उन्हें वन्दना की गई है तथा चतुर्थ पद में उनकी गम्भीरता का समुद्र के तुल्य दिग्दर्शन कराया गया है, जैसे कि
अक्खुभियसमुद्द-गम्भीरं - अक्षुभित-समुद्रवत् गंभीरम् - इसका भाव यह है कि प्रत्येक विषय में जिनकी समुद्र के समान गम्भीरता है। कारण कि उक्त गुण वाला ही अपने अभीष्ट की सिद्धि कर सकता है। स्तुतिकर्ता ने अज्जसमुद्द-पद दिया है। इसका तात्पर्य यह है ऐसी कीर्ति और विज्ञान प्रायः आर्य पुरुष ही प्राप्त कर सकते हैं। अतः आर्य पद युक्तिसंगत ही है। पेयालं - शब्द प्रमाण अर्थ में आया हुआ जानना चाहिए।
त्रिसमुद्रख्यात - कीर्ति - इस पद से यह भी ध्वनित होता है कि भारतवर्ष की सीमा तीन दिशाओं में समुद्र - पर्यन्त है।
मूलम्-भणगं करगं झरगं, पभावगं णाणदंसणगुणाणं । वंदामि अज्जमंगं, सुयसागरपारगं धीरं ॥ ३० ॥ छाया- भाणकं-कारकं ध्यातारं, प्रभावकं ज्ञानदर्शनगुणानाम् । वन्दे आर्यमंगुं श्रुतसागरपारगं धीरम् ॥ ३० ॥
पदार्थ-भणगं-कालिक सूत्रों के अध्ययन करने वाले, करगं - सूत्रानुसार क्रिया-काण्ड करने वाले, झरगं - धर्म - ध्यान के ध्याता, णाण- दंसणगुणाणं- ज्ञान - दर्शन और चारित्र के गुणों का, पभावगं - उद्योत करने वाले, और, सुयसागरपारगं - श्रुतसागर के पारगामी, धीरंधैर्य आदि गुण सम्पन्न, अज्जमंगुं - आर्यमंगुजी को, वंदामि-वन्दन करता हूं।
भावार्थ- सदैव कालिक आदि सूत्रों का स्वाध्याय करने वाले, शास्त्रानुसार क्रिया-कलाप करने वाले, धर्म-ध्यान ध्याने वाले, ज्ञान, दर्शन और चारित्र आदि रत्नत्रय गुणों को दिपाने वाले तथा श्रुतरूप सागर के पारगामी तथा धीरता आदि गुणों के आकर आचार्य श्री आर्यमंगुजी महाराज को नमस्कार करता हूं।
टीका - इस गाथा में स्तुतिकार ने आचार्य समुद्र के पश्चात् -
(16) श्री आर्य मंगुजी स्वामी के गुणों का दिग्दर्शन कराया है। कालिक, उत्कालिक, मूल, छेद आदि सूत्र तथा अर्थ के अध्ययन और अध्यापन करने वाले, आगमोक्त क्रियाकलाप करने वाले, धर्मध्यान के ध्याता, सम्यग् दर्शन, ज्ञान और चारित्र गुणों से युक्त,
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