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वह मेरुपर्वत विराजमान है, उसके तुल्य अन्य कोई पर्वत नहीं है।
सम्मदंसण-वरवइर-इत्यादि सम्यग्-अविपरीतं दर्शनं दृष्टिरिति सम्यग्दर्शनम्। दृष्टि का सम्यक् होना ही सम्यग् दर्शन कहलाता है अर्थात् त्तत्त्वार्थ श्रद्धान को ही सम्यग्दर्शन कहते हैं, वही सम्यग्दर्शन श्रीसंघमेरु की वज्रमय पीठिका है, जोकि मोक्ष का प्रथम सोपान
धम्मवररयणमण्डिय-इत्यादि श्रीसंघमेरु स्वाख्यात धर्मरत्न से मंडित स्वर्णमेखला से युक्त है। धर्म मूलगुण और उत्तरगुणों में विभाजित है, दोनों प्रकार के धर्मों से श्रीसंघमेरु सुशोभायमान है।
इन्द्रिय और मन दमन रूप नियमों की कनक-शिलाओं से संघ सुमेरु अलंकृत है, विशुद्ध एवं ऊंचे अध्यवसाय ही श्रीसंघमेरु के चमकते हुए ऊंचे कूट हैं, जो कि प्रति समय कर्ममल दूर होने से प्रकाशमान हो रहे हैं। विधिपूर्वक आगमों का अध्ययन, संतोष, शील इत्यादि अपूर्व सौंदर्य और सौरभ्य आदि गुणरूप नन्दनवन से श्रीसंघमेरु परिवृत हो रहा है, जो कि महामानव और देवों को सदा आनन्दित कर रहा है। क्योंकि नन्दनवन में रहकर देव भी प्रसन्न होते हैं, जैसे वृत्तिकार लिखते हैं___ “नन्दन्ति सुरासुरविद्याधरादयो यत्र तन्नंदनवनम्। अशोक-सहकारादि पादपवृंदम्, नन्दनंच तद्वनं च नन्दनवनं, लतावितानगतविविधफल-पुष्प-प्रवाल-संकुलतया मनोहरतीति मनोहरं, लिहादिभ्य इत्यच प्रत्ययः, नन्दनवनं च तन्मनोहरं च तस्य सुरभिस्वभावो यो गन्धस्तेन उद्घमायः, आपूर्णः उद्घमायः शब्द आपूर्ण पर्यायः, यत् उक्तमभिमानचिन्हेन- “पडिहत्थमुद्धमायं अहिरे (य) इयं च जाण आउण्णो" तस्य संघमन्दरगिरिपक्षे तु नन्दनं-सन्तोषः, तथाहि तत्र स्थिताः साधवो नंदंति, तच्च विविधामर्षोषध्यादि लब्धिसंकुलतया मनोहरं तस्य सुरभिः शीलमेव गन्धः, तेन व्याप्तस्य, अथवा मनोहरत्वं सुरभिशीलगंधविशेषणं द्रष्टव्यम्।" . इस कथन से यह सिद्ध होता है कि श्रीसंघसुमेरु सन्तोषरूप नन्दनवन, लब्धिरूप शक्तियों से मनोहर एवं शील की सुगंध से व्याप्त हो रहा है। जीवदया से यह प्राणीमात्र का आवास स्थान बना हुआ है। श्रीसंघ सुमेरु वादियों को पराजित करने वाले अनगार-सिंहों से व्याप्त है। .
- हेउसयधाउपगलन्त इत्यादि-इसका भाव यह है कि श्रीसंघमेरु पक्ष में अन्वय-व्यतिरेक लक्षण वाले सैकड़ों हेतुओं से वादियों की कुयुक्ति तथा असद्वाद का निराकरण रूप विविध उत्तम धातुओं से सुशोभित है और विचित्र प्रकार के श्रुतज्ञानरूपी रत्नों से वह श्रीसंघमेरु प्रकाशमान हैं। वह आमर्ष आदि 28 लब्धिरूप औषधियों से व्याप्त हो रहा है। गुहा शब्द से-धर्मव्याख्यानों से व्याख्यानशालाएं सुन्दरता को प्राप्त हो रही हैं।
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