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करने की प्रभा है, उस एकान्तवादिता रूप प्रभा को नष्ट करने वाला श्रीसंघ सूर्य है। जो कि अपनी सम्यग् अनेकान्तवाद की सहस्र रश्मियों के द्वारा स्वयं अकेला ही जगमगाता हुआ संसार को प्रकाशित करता है।
जिस प्रकार सूर्य अपनी किरणों से तेजस्वी है, उसी प्रकार श्रीसंघसूर्य भी तप-तेज से देदीप्यमान है। विश्व में सूर्य से बढ़कर अन्य कोई द्रव्य प्रकाशक नहीं, श्रीसंघ भी ज्ञान प्रकाश से अद्वितीय प्रकाशक है। क्योंकि श्रीसंघ में एक से एक बढ़कर तेजस्वी मुनिवर हैं, जोकि भव्य आत्माओं को ज्ञान का प्रकाश देते हैं। अतः स्तुतिकर्ता कहते हैं-हे दमसंघ सूर्य ! आपका सदा कल्याण हो और आप सदा जयवन्त हों।
स्तुतिकार ने प्रत्येक पद में षष्ठी का प्रयोग किया है-इससे यह भली-भांति सिद्ध हो जाता है कि परवादियों का ज्ञान-विकास ग्रहों की प्रभा के समान है। यद्यपि ग्रह अपने मंद प्रकाश से पदार्थों को यत्किचित् रूपेण प्रकाशित करने में कुछ सफल हो जाते हैं, तदपि सूर्य के सामने उनका प्रकाश नगण्य है। इसी प्रकार एकान्तवादियों का ज्ञानप्रकाश तब तक ही रह सकता है, जब तक कि श्रीसंघसूर्य अपने स्याद्वाद, अनेकान्तवाद, नय एवं प्रमाणवाद इत्यादि किरणों से भासित नहीं होता। ___ संघसूर्य के आदि में 'दम' शब्द जोड़ देने से संघ का महत्व कुछ और भी अधिक बढ जाता है, जो मन और इन्द्रियों पर पूर्ण नियंत्रण रखने वाला संघ होता है, उसका ज्ञान प्रकाश भी समुज्ज्वल एवं तेजस्वी होता है।
यद्यपि किसी समय राहु, बादल, कुहरा, आंधी आदि सूर्य की प्रभा को कुछ काल तक आच्छादित कर देते हैं, तदपि वह सदा के लिए नहीं। वैसे तो वह अपने आप में पूर्ण प्रकाशमान है, उसमें अन्धकार का सर्वथा अभाव ही है और न उसे कोई आच्छादित ही कर सकता है, फिर भी व्यवहार में ऐसा कहा जाता है-'राहु ने या बादलों ने सूर्य को ढक दिया !' अन्ततोगत्वा-सूर्य अपनी भास्वर किरणों से उसी प्रकार प्रकाश करता है जिस प्रकार राहु के लगने से पूर्व प्रकाश करता था। दुःषमकाल के प्रभाव से जबकि मिथ्यादृष्टियों का बोलबाला बढ़ जाता है, तब कोई वादी अनभिज्ञ जनता के समक्ष कहता है कि मैंने स्याद्वाद सिद्धान्त का युक्तिपूर्वक खण्डन कर दिया, वह किया हुआ खण्डन अनभिज्ञ लोगों के अन्तःकरण में तब तक ठहर सकता है जब तक कि उन्होंने अनेकान्तवाद को नहीं सुना। जैसे सूर्य के उदय होते ही अंधकारं लुप्त हो जाता है, वैसे ही अनेकान्तवाद को श्रद्धापूर्वक सुनकर अन्त:करण का दुर्नय, प्रमाणाभास रूप अन्धकार विनष्ट हो जाता है। इसी कारण दमसंघसूर्य सदैव कल्याणकारी है।
जैसे सूर्य के उदय होने से पूर्व ही उल्लू, चमगादड़, वन्य श्वापद कहीं पर छिप जाते हैं तथा इतस्ततः परिभ्रमण नहीं करते, वैसे ही श्रीसंघसूर्य के उदयकाल में मुमुक्षुओं को
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