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चंदे जोइसिंदे जोइसराया सोमे, कते, सुभगे, पियदसणे, सुरूवे, से तेणद्वेणं जाव ससी।"
-सूत्र 4-54, व्या० प्र० शo 12, उ0 6 । इस पाठ का यह भाव है कि चन्द्र का विमान मृगांक से अंकित है और चन्द्र उस विमान में रहने वाले देव हैं तथा देवियां सौम्य, कान्त, सुभग, प्रियदर्शन, सुरूप इत्यादि गुणयुक्त होने से चन्द्र को स-श्री होने से शशी कहा जाता है। 'चन्द्र' सौम्यगुण, स्वच्छज्योत्स्ना, नित्यगतिशील इत्यादि अनेक गुणयुक्त होने से श्रीसंघ को भी चन्द्र की उपमा से उपमित किया ।
संघसूर्य-स्तुति मूलम्- परतित्थियगहपहनासगस्स, तवतेयदित्तलेसस्स ।
नाणुज्जोयस्स जए, भदं दमसंघसूरस्स ॥ १० ॥ .. छाया- परतीर्थिक-ग्रहप्रभानाशकस्य, तपस्तेजोदीप्तलेश्यस्य ।
ज्ञानोद्योतस्य जगति, भद्रं दमसंघसूरस्य ॥ १० ॥ पदार्थ-परतित्थियगहपहनासगस्स-एकान्तवाद को ग्रहण किए हुए परवादी ग्रहों की प्रभा को नष्ट करने वाला, तवतेयदित्तलेसस्स-तप-तेज से जो देदीप्यमान है, नाणुज्जोयस्स-जो सदा सम्यग्ज्ञान का प्रकाशक है, दमसंघसूरस्स-ऐसे उपशम प्रधान संघसूर्य का, जए भई-जगत् में कल्याण हो।
भावार्थ-एकान्तवाद, दुर्नय का आश्रय लेने वाले परवादी रूप ग्रहों की प्रभा को नष्ट करने वाला, तप-तेज से जो सदा देदीप्यमान है, सम्यग्ज्ञान का ही सदा प्रकाश करने वाला है, इन विशेषणों से युक्त उपशमप्रधान संघसूर्य का विश्व में कल्याण हो।
टीका-इस गाथा में स्तुतिकार ने श्रीसंघ को सूर्य से उपमित किया है। जैसे सूर्य अन्य सभी ग्रहों की प्रभा को छिपा देता है, वैसे ही श्रीसंघसूर्य भी कपिल, कणाद, अक्षपाद, चार्वाक आदि दर्शनकार जो कि एकान्तवाद को लेकर चले हैं, उनकी प्रभा को निस्तेज़ करता है। क्योंकि वस्तु अनन्त धर्मात्मक है, उसमें से एक धर्म को लेकर शेष धर्मों का निषेध करना, इसे दुर्नय कहते हैं और जो दर्शन वस्तु में रहे हुए अन्य धर्मों का निषेध नहीं करता, उसे नय कहते हैं, अत: इन परवादियों के दुर्नय के ग्रहण करने से जो उनमें पदार्थों के कथन
1. 'से केणट्टेण' मित्यादि मियंके त्ति मृगचिह्नत्वात् मृगांके विमानेऽधिकरणभूते सोमे ति सौम्य अरौद्राकारो नीरोगो
वा, कन्ते त्ति कान्तियोगात्, सुभए सुभगः-सौभाग्ययुक्तत्वाद् वल्लभो जनस्य, पियदंसणे त्ति प्रेमकारिदर्शनः कस्मादेवं? अत आह सुरूपः से तेणढे ण मित्यादि। अथ तेन कारणेनोच्यते, ससी त्ति सहश्रिया इति सश्री: तदीयदेव्यादीनां स्वस्य च कान्त्यादि युक्तादिति, प्राकृतभाषापेक्षया च ससी ति सिद्धम्।
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