________________
वह देवाधिष्ठित होता है। वह सुदर्शन चक्ररत्न जिसके अधीन होता है, उसके राज्य में ईति-भीति आदि उपद्रव नहीं होते। प्रजा शान्ति एवं चैन से जीवन यापन करती है। इत्यादि अनेक गुणों से चक्र संपन्न होता है। यह है उसकी विलक्षणता।
ठीक इसी प्रकार श्रीसंघ-चक्र भी अपने असाधारण कारणों से अलौकिक ही है। पांच आस्रवों से निवृत्ति, पांच इन्द्रियों का निग्रह, चार कषायों का जय, और दण्डत्रय से विरति, इनके समुदाय को संयम कहते हैं।' ___अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिसंक्षेप, रस-परित्याग, कायक्लेश, प्रतिसंलीनता, प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य (सेवा), स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग, इस प्रकार 12 भेदों सहित बारह प्रकार का तप होता है।
इन में छः भेद बाह्य तप के हैं और अन्तिम छ: भेद आभ्यन्तर तप के हैं। श्रीसंघ- चक्र में तुम्ब के तुल्य संयम है। आरक के तुल्य बारह प्रकार का तप है। सम्यक्त्व स्थानीय परिकर
सम्मत्तपारियल्लस्स-इस पद से यह सिद्ध किया गया है कि सम्यक्त्व ही चक्र का उपरिभाग है। सम्यक्त्व, तप और संयम ये तीनों श्रीसंघचक्र के असाधारण अंग हैं, जिनके बिना श्रीसंघचक्र नहीं कहलाता है। ___अप्पडिचक्कस्स-श्रीसंघ अप्रतिम चक्र है, इसके समान अन्य कोई चक्र नहीं है। इसी कारण संघचक्र सदा जयशील होने से नमस्करणीय है। इस गाथा में चतुर्थी के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग किया गया है। क्योंकि प्राकृत भाषा में चतुर्थी के स्थान परं षष्ठी होती है, जैसे कि-"संजमतुम्बारयस्स नमो सम्मत्तपारियल्लस्स" कहा भी है-'छठिं विहत्तीए भण्णइ चउत्थी'-इस नियम के अनुसार नमः के योग में चतुर्थी के स्थान पर षष्ठी की है। 'पारियल्ल' शब्द देशी प्राकृत का परिकर अर्थ में आया हुआ है। गाथा में जो अपडिचक्कस्स पद दिया है, इसका आशय यह है कि जैसा चतुर्विध श्रीसंघ अपने आध्यात्मिक वैभव से अनुपम है, वैसा अन्ययूथिक चरकादि वादियों का संघ नहीं है। इसके विषय में वृत्तिकार के निम्नलिखित शब्द हैं-'न विद्यते प्रति-अनुरूपं समानं चक्रं यस्य तदप्रतिचक्र चरकादिचक्ररसमानमित्यर्थः'। इसका भाव यह है-जिस प्रकार संयम तुम्ब और तपरूप
1. पंचाश्रवाद्विरमणं पंचेन्द्रिय-निग्रहः कषायजयः।
दण्डत्रयविरतिश्चेति संयमः सप्तदश भेदः ।। 1 ।। अनशनमूनोदरता वृत्तेः संक्षेपणं रसत्यागः । कायक्लेशः संलीनतेति बाह्यं तपः प्रोक्तम् ।। 1 ।। प्रायश्चित्त-ध्याने वैयावृत्त्यविनयावथोत्सर्गः। स्वाध्याय इति तपः षट् प्रकारमभ्यन्तरं भवति ।। 2 ।।
*124