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________________ अखण्ड- चारित्रप्राकार ! तेरा भद्र अर्थात् तेरा कल्याण हो ! यहां स्तुतिकार ने संघ के प्रति उत्कट विनय प्रदर्शित किया है। इससे यह सिद्ध होता है कि उन स्तुतिकार के मन में संघ के प्रति कितनी सहानुभूति, वात्सल्य, श्रद्धा और भक्ति थी । यही मार्ग हमारा है, 'महाजनो येन गतः स पंथाः।' संघचक्र-स्तुति मूलम् - संजम-तव- तुंबारयस्स, नमो सम्मत्तपारियल्लस्स । अप्पचिक्कस्स जओ, होउ सया संघचक्कस्स ॥ ५ ॥ " संयम-तपस्तुम्बारकाय नमः सम्यक्त्वपारियल्लाय । अप्रतिचक्रस्य जयो भवतु, सदा संघचक्रस्य ॥ ५ ॥ पदार्थ-संजम-तव- तुंबारयस्स - संयम ही तुम्ब - नाभि है, छ: प्रकार बाह्य तप और छः प्रकार आभ्यन्तर, इस प्रकार तप के बारह भेद ही जिस में चारों ओर लगे हुए 12 आरे हैं, सम्मत्तपारियल्लस्स-सम्यक्त्व ही जिसका बाह्य परिकर है अर्थात् परिधि है, नमो-ऐसे भावचक्र को नमस्कार हो, अप्पडिचक्कस्स-जिस के सदृश विश्व में अन्य कोई चक्र नहीं है अर्थात् अद्वितीय है, ऐसे, संघचक्कस्स - संघचक्र की, सया जओ होउ - सर्वकाल जय हो, वह अन्य किसी संघ से जीता नहीं जा सकता । अतः वह सदा सर्वदा जयशील है, इसी कारण से वह नमस्करणीय है। छाया भावार्थ-सत्तरह प्रकार का संयम ही जिस संघचक्र का तुम्ब - नाभि है और बाह्यआभ्यन्तर तप ही बारह आरक हैं, तथा सम्यक्त्व ही जिस चक्र का घेरा - परिधि है, ऐसे भावचक्र को नमस्कार हो, जिसके तुल्य अन्य कोई चक्र नहीं है, उस संघ-चक्र की सदा जय हो । यह संघ-चक्र या भावचक्र संसार - भव तथा कर्मों का सर्वथा उच्छेद करने वाला है। - इस गाथा में स्तुतिकार ने श्रीसंघ को चक्र की उपमा से उपमित किया है और साथ ही चक्र निर्माण की सूचना भी दी गई है। चक्र का तुम्ब - मध्य भाग चारों ओर आरों से युक्त होता है, और साथ ही वह परिकर से भी युक्त होता है। चक्र की उपयोगिता सभी मशीनरियों का आद्य कारण चक्र है। ऐसी कोई मशीनरी नहीं है जोकि चक्रविहीन हो। चक्र वैज्ञानिक साधनों का मूल कारण है। दुश्मनों का नाश करने वाला भी । प्राचीन युग में सब से बड़ा अस्त्र चक्र था जोकि अर्धचक्री के पास होता है। इसी से वासुदेव प्रतिवासुदेव को मारता है। चक्र ही चक्रवर्ती का दिग्विजय करते समय मार्गप्रदर्शन करता है, और जब तक छः खण्ड स्वाधीन न हो जाएं तब तक वह चक्र आयुधशाला में प्रवेश नहीं करता, क्योंकि * 123 *
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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