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________________ इस गाथा में 'जयइ' क्रिया गाथा के प्रत्येक चरण के साथ चार बार आई है, इसका समाधान पूर्ववत् ही समझना चाहिए। प्रस्तुत गाथा में श्रुतज्ञान के प्रथम उत्पत्ति कारण और उसके प्रवर्तक तीर्थंकर देव, जीवों के हितशिक्षा देने से लोकगुरु, अपौरुषेयवाद का निषेध, तथा महात्मा महावीर, इनका सविस्तर विवेचन किया गया है। अपश्चिम शब्द से यह भली-भांति सिद्ध हो जाता है कि एक अवसर्पिणी काल में चौबीस ही तीर्थंकर होते हैं। और इस गाथा में संक्षिप्त रूप से ज्ञानातिशय का भी वर्णन किया गया है। अब स्तुतिकार भगवान् महावीर की स्तुति के अनन्तर उनके अतिशयों का वर्णन करते हुए लिखते हैंमूलम्- भदं सव्वजगुज्जोयगस्स, भदं जिणस्स वीरस्स । भद्दे सुरासुरनमंसियस्स, भदं धूयरयस्स ॥ ३ ॥ छाया- भद्रं सर्वजगदुद्योतकस्य, भद्रं जिनस्य वीरस्य । भद्रं सुरासुरनमस्यितस्य, भद्रं धूतरजसः ॥ ३ ॥ पदार्थ-भदं सव्वजगुज्जोयगस्स-समस्त जगत् में ज्ञान के प्रकाश करने वाले का कल्याण हो, भदं जिणस्स वीरस्स-रागद्वेषरहित परमविजयी जिन महावीर का भद्र हो, भदं सुरासुर-नमंसियस्स-देव-असुरों के द्वारा वन्दित का भद्र हो, भदं धूयरयस्स-अष्टविध कर्मरज को सर्वथा नष्ट करने वाले का भद्र हो। भावार्थ-विश्व को ज्ञानालोक से आलोकित करने वाले, रागद्वेष रूप कर्म-शत्रुओं पर विजय पाने वाले वीर जिन का तथा देव-दानवों से वन्दित, कर्मरज से सर्वथा मुक्ति पाने वाले महात्मा महावीर का सदैव भद हो। टीका-प्रस्तुत गाथा में सर्वप्रथम ज्ञान अतिशय का वर्णन किया है, जैसे कि सर्वजगत् के उद्योत करने वाले अर्थात् केवल ज्ञानालोक से लोकालोक को प्रकाशित करने वाले श्रीभगवान् का कल्याण हो। ___ 'सव्वजगुज्जोयगस्स-इस पद से भगवान् की सर्वज्ञता सिद्ध की गई है। जिनकी मान्यता है, जीव सर्वज्ञ नहीं हो सकता' इसका स्पष्ट रूप से निराकरण किया गया है। भद्र का अर्थ कल्याण होता है। स्तुतिकार का आशय यह नहीं है कि वे भगवान् को आशीर्वाद के रूप में कह रहे हों कि आपका कल्याण हो, बल्कि उनका आशय यह है कि भगवान् में मुख्यतया चार अतिशय होते हैं, प्रत्येक अतिशय कल्याणप्रद ही होता है। ज्ञानातिशय वाले का कल्याण अवश्यंभावी है। *119* -
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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