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तीर्थंकर शब्द का अर्थ होता है-भावतीर्थ की स्थापना करने वाले। जिससे संसार सागर तैरा जाए, उसे भावतीर्थ कहते हैं। जैसे-साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका। इन चार तीर्थों की स्थापना करने वाले को तीर्थंकर कहते हैं। 'अपच्छिम' शब्द सूचित करता है कि इनके पश्चात् अन्य तीर्थंकर इस अवसर्पिणीकाल में नहीं होंगे। अत: भगवान् महावीर स्वामी अन्तिम तीर्थंकर हुए हैं, जैसे कि कहा भी है-“तीर्थंकराः, तेषां तीर्थंकराणाम्-अस्मिन् भारते वर्षेऽधिकृतायामवसर्पिण्यां न विद्यते पश्चिमोऽस्मादित्यपश्चिमः-सर्वान्तिमः, पश्चिम इति नोक्तम्, अधिक्षेपसूचकत्वात्पश्चिमशब्दस्य। (पश्चिम शब्द अमंगल होने से उसका प्रयोग नहीं किया)।
गुरू लोगाणं-स्तुतिकार ने तीसरा विशेषण दिया है- 'गुरुर्लोकानां' किसी एक व्यक्ति या एक संप्रदाय के गुरु नहीं, अपितु लोक के गुरु। क्योंकि उन्होंने सभी वर्गों को और सभी आश्रमवासियों को नि:स्वार्थ तथा परमार्थ भाव से धर्मोपदेश सुनाया है। अत: वे लोकपूज्य होने से लोकमात्र के गुरु बन गए। इस का भाव वृत्तिकार ने निम्न प्रकार से व्यक्त किया है, जैसे कि-"जयति गुरुर्लोकानामिति लोकानां-सत्त्वानां गृणाति प्रवचनार्थमिति गुरुः, प्रवचनार्थ प्रतिपादकतया पूज्य इत्यर्थः।"
जयइ महप्या महावीरो-जयति महात्मा महावीरः इस पद से स्तुतिकार ने महावीर को महात्मा कहा है। जिसने अपने आप को महान् बनाया है, वह दूसरों को भी महान् बनाने में निमित्त बन सकता है। जिसका स्वभाव अचिन्त्य शक्ति से युक्त हो, उस आत्मा को: महात्मा कहते हैं, इस पर वृत्तिकार लिखते हैं-"महान्-अविचिन्त्य शक्त्युपेत आत्मस्वभावो यस्य स महात्मा।" महावीर शब्द की व्युत्पत्ति वृत्तिकार ने निम्नलिखित की है-“शूर वीर विक्रान्तौ, वीरयति स्मेति वीरो विक्रान्तः, महान्-कषायोपसर्ग-परीषहेन्द्रियादिशत्रुगणजयादतिशायी विक्रान्तो महावीरः, अथवा ईर्, गति-प्रेरणयोः विशेषेण ईरयति गमयति, स्फेटयति कर्म प्रापयति वा शिवमिति वीरः, अथवा (ऋ) गतौ' विशेषेण-अपुनर्भावेन इयर्ति स्म, याति स्म शिवमिति वीरः, महाश्चासौ वीरश्चेति महावीरः।"
इस वृत्ति का भाव है-मन, इन्द्रिय, कषाय, परीषह, प्रमाद आदि आभ्यन्तरिक शत्रुओं के जीतने से वीर ही नहीं, अपितु उसे महावीर कहा जाता है। अथवा जो निर्वाण-पद को प्राप्त करता है, जहां से पुनः लौटकर संसार में न आना पड़े, उसे वीर कहते हैं। जो सर्व वीरों में परम वीर हो, उसे महावीर कहते हैं। कामदेव संसार में सबसे बड़ा योद्धा है, जिसने देव-दानव और मानव को भी पछाड़ दिया है। इस दृष्टि से कामदेव वीर है, किन्तु वर्धमानजी ने उसे भी जीत लिया है अतएव उन्हें महावीर' कहते हैं। अर्थात् जिसे जीतना कोई शेष नहीं रह गया, उसे महावीर कहते हैं।
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