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५. वण्णेहिं ति - शुक्लादि वर्णविभागेन तेषामेव उत्कर्षापकर्षसंख्येयासंख्येयानन्तगुणविभागेन च वर्णग्रहणमुपलक्षणं, तेन गन्ध-रस-स्पर्शविभागेन चेति द्रष्टव्यम्।
६. संठाणेहिं ति - यानि तस्यां रत्नप्रभायां भवननारकादीनि संस्थानानि तद्यथा - ते णं भवणा बाहिं वट्टा, अन्तो चउरंसा, अहे पुक्खरकण्णिया संठाणसंठिया तत्थ ते णं निरया अन्तो वट्टा, बाहिं चउरंसा अहे खुरप्पसंठाणसंठिया इत्यादि।
७. पमाणेहिं ति परिमाणानि यथा असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लप्पमाणमेत्ता आयाम - विक्खंभेणमित्यादि ।
८. पडोयारेहिं ति - प्रति सर्वतः सामस्त्येन अवतीर्यते व्याप्यते यैस्ते प्रत्यवतारास्ते चात्र घनोदध्यादिवलया वेदितव्यास्ते हि सर्वासु दिक्षु विदिक्षु चेमां रत्नप्रभां परिक्षिप्य व्यवस्थितास्तै:
- मलयगिरिकृत वृत्तिः ।
नन्दीसूत्र में साकारोपयोग रूप पांच ज्ञान का ही वर्णन है । यद्यपि साकारोपयोग में पांच ज्ञान, तीन अज्ञान का समावेश भी हो जाता है, तदपि तीन अज्ञान का वर्णन प्रस्तुत सूत्र में नगण्य ही है। मुख्यता तो इसमें ज्ञान की है। सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन का परस्पर नित्य सम्बन्ध है। दूसरी ओर मिथ्यात्व और अज्ञान का साहचर्य नित्य है।
जैन आगमों में तथा कर्मग्रन्थों में चौदह गुणस्थानों का सविस्तर वर्णन मिलता है। पहले गुणस्थान में अनन्त-अनन्त जीव विद्यमान हैं, जो कि मिथ्यात्व के गहन अन्धकार में भटक रहे हैं। उनमें कतिपय अनादि अनन्त मिथ्यादृष्टि जीव हैं। कितने ही अनादि सान्त मिथ्यादृष्टि हैं और कतिपय सादि सान्त मिथ्यादृष्टि हैं। तीनों भागों में अनन्त - अनन्त जीव हैं, किन्तु सास्वादन, मिश्र, अविरत-सम्यग्दृष्टि और देशविरत (श्रावक) इन चार गुणस्थानों में असंख्य जीव पाए जाते हैं।
असंख्यात के असंख्यात भेद होते हैं। जीवों की आयु और कर्मों की स्थिति अद्धापल्योपम से ग्रहण की जाती है, किन्तु जीवों की गणना क्षेत्रपल्योपम से। क्षेत्रसागरोपम से और अलोक में लोक जैसे खण्ड असंख्यात तथा अनन्त के जो आगम में उदाहरण दिए हैं, उन सबका प्रारम्भ क्षेत्र पल्योपम से लिया जाता है। क्षेत्रपल्योपम के असंख्यातवें भाग में यावन्मात्र आकाश प्रदेश हैं, वे चाहे बालाग्रखण्डों से स्पृष्ट हैं या अस्पृष्ट, हैं असंख्यात ही ।
उपर्युक्त चार गुणस्थानों में जितने जीव हैं, यदि उन्हें एकत्रित किया जाए तो भी पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र राशि बनेगी। पृथक्-पृथक् उनकी चारों राशि में भी पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र जीव पाए जाते हैं। कल्पना कीजिए एक पल्योपम में कुल संख्या 65536 हैं। उनमें 2048 जीव सास्वादन गुणस्थान में पाए जा सकते हैं। मिश्र गुणस्थान में जीवों की संख्या अधिक से अधिक 4096 पाई जा सकती है। अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान
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