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________________ में अधिक से अधिक 16384 जीव पाए जा सकते हैं। देशविरत गुणस्थान में 512 जीव पाए जा सकते हैं। यद्यपि दूसरा और तीसरा गुणस्थान अशाश्वत है, तदपि उन गुणस्थानों में यदि अधिक से अधिक पाए जाएं तो उपर्युक्त शैली से असंख्यात पाए जा सकते हैं। छठे गुणस्थान से लेकर 14वें गुणस्थान तक कुल जीव संख्यात ही हैं, क्योंकि संज्ञी मनुष्य संख्यात हैं, उनमें सिवाय संयत मनुष्य के अन्य जीव नहीं पाए जाते। पंचम और तीसरे गुणस्थान में संज्ञी मनुष्य और तिर्यंच दोनों गति के जीव पाए जाते हैं। दूसरे से लेकर चौथे गुणस्थान तक चारों गति के जीव पाए जाते हैं। ... प्रमत्त संयतों में मन:पर्यवज्ञानी स्वल्प हैं, अवधिज्ञानी विशेषाधिक, मति-श्रुत परस्पर तुल्य विशेषाधिक हैं। इसी प्रकार सातवें अप्रमत्त गुणस्थान तक समझना चाहिए। आठवें में उपशमक अवधिज्ञानी 14, और क्षपक 28 पाये जा सकते है।'मन:पर्यवज्ञानी उपशमक 10, और क्षपक 20 पाए जा.सकते हैं। उपशम श्रेणी में यदि निरन्तर जीव प्रवेश करें तो आठ समय तक कर सकते हैं, तदनन्तर नियमेन अन्तर पड़ जाता है, जैसे पहले समय में. जघन्य 1 2 3 यावत् 16 प्रवेश कर सकते हैं। दूसरे " " " . , , , 24 , , तीसरे , , , , , , , 30. " " " चौथे , , , , , , , 36 , , , , पांचवें , , , , , , , 42 , , , , छठे , . , , , , , , 48 , , , , सातवें . . , , , , , , 54 , , , , आठवें , , , , , , , 54 , , , , : : : : : : : : : :: : यदि पहले समय में 54 उपशम श्रेणी में प्रविष्ट हो जाएं तो अवश्य अन्तर (विरह) पड़ जाता है। साकारोपयोगी जीवों का अल्पबहुत्व ___ सबसे स्वल्प मन:पर्यवज्ञानी, उनसे अवधिज्ञानी असंख्यातगुणा, उनसे मतिज्ञानी तथा श्रुतज्ञानी परस्पर तुल्य विशेषाधिक हैं, उन सबसे विभंगज्ञानी असंख्यातगुणा, उन सबसे 1. उवसामगा चोदस, खवगा अट्ठावीस। 2. उवसामगा दस, खवगा वीस। (धवला जीवस्थान) *93
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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