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२. द्विखुरा-दो खुरों वाले-गो-महिषी आदि। ३. गंडीपदा-गंडीपद वाले-हस्ती आदि। ४. सनखपदा-नखसहित पैरों वाले–सिंह आदि।
इस प्रकार पहले भेद में-अश्व-गम्भादि, दुसरे में गौ महिषी आदि, तीसरे भेद में-हस्ती आदि, और चौथे में सिंह-व्याघ्र आदि का समावेश है। जिनके पैर में एक ही खुर होता है, अर्थात् चरण के नीचे एक स्थूल अस्थिविशेष. होती है वे एक खुर वाले अश्वादि पशु चतुष्पाद हैं तथा दो खुर वाले जीव गौ-बैल आदि पशु हैं। वर्तुलाकार अर्थात् गोल जिनके पैर हैं ऐसे हस्ती आदि पशु 'गडीपद' कहलाते हैं और जिनके पैर नखों से युक्त हैं, वे सनखपद कहे जाते हैं।
यहां पर सनखपद का-'सणप्पय' यह प्राकृत रूप है। तथाच-नखैनखात्मकैर्वर्तन्त इति सनखानि, तथाविधानि पदानि येषां ते सनखपदाः सिंहादयः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार सिंहादि चतुष्पाद जीव सनखपद कहे जाते हैं। अब परिसरों के भेद बताते हैं, यथा
भुओरगपरिसप्पा य, परिसप्पा दुविहा भवे ॥ गोहाई अहिमाई य, एक्केक्का णेगहा भवे ॥ १८१ ॥ भुजपरिसर्पा उरःपरिसश्च, परिसर्पा द्विविधा भवेयुः ।
गोधादयोऽह्यादयश्च, एकैकका अनेकधा भवेयुः ॥ १८१ ॥ __ पदार्थान्वयः-भुअ-भुजपरिसर्प, उरगपरिसप्पा-उर:परिसर्प, परिसप्पा-परिसर्प, दुविहा-दों प्रकार के, भवे-होते हैं, गोहाई-गोधा आदि, अहिमाई-अहिसर्प आदि, य-पुनः, एक्केक्का -एक-एक, अणेगहा-अनेक प्रकार के, भवे-होते हैं।
मूलार्थ-परिसर्प के दो भेद हैं-भुजपरिसर्प और उरःपरिसर्प। भुजपरिसर्प-गोधा आदि हैं और उरःपरिसर्प सर्प आदि कहे गए हैं, फिर इनके प्रत्येक के अनेक भेद हैं। ___टीका-जो जीव दो भुजाओं के बल चलते हैं उनको भुजपरिसर्प कहते हैं तथा जो जीव छाती के बल रेंगते हैं उन्हें उर:परिसर्प कहा जाता है। गोधा, नकुल और मूषक आदि जीव तो भुजपरिसर्प हैं और सर्प आदि जीवों को उर:परिसर्प कहते हैं, ये इन दोनों के भेद हैं। नकुल, मूषक आदि में अनेक जातियां पाई जाती हैं, तथा सों की भी-दर्वीकर; मुकुलीकर, उग्रविष और कालविष आदि नाना जातियां हैं। यद्यपि जल में भी सर्पादि का सद्भाव है, तथापि छाती के बल से चलने के कारण इनको स्थलचर ही माना गया है। अब इनका क्षेत्र-विभाग बताते हैं, यथा
लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वोच्छं चउव्विहं ॥ १८२ ॥
लोकैकदेशे ते सर्वे, न सर्वत्र व्याख्याताः । इतः कालविभागन्तु, तेषां वक्ष्यामि चतुर्विधम् ॥ १८२ ॥.
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ४४४] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं