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सप्त सागरोपम की कथन की गई है।
टीका-तीसरे नरक में नारकी जीव कम से कम तीन सागरोपम तक रहते हैं और अधिक से अधिक सात सागरोपम तक उनका वहां निवास-काल कहा गया है। अब चतुर्थ नरक के विषय में कहते हैं
दससागरोवमाऊ, उक्कोसेण वियाहिया । चउत्थीए जहन्नेणं, सत्तेव सागरोवमा ॥ १६३ ॥ दशसागरोपमाण्यायुः, उत्कर्षेण व्याख्याता ।।
चतुर्थ्यां जघन्येन, सप्तैव सागरोपमाणि ॥ १६३ ॥ पदार्थान्वयः-चउत्थीए-चतुर्थ पृथिवी में, जहन्नेणं-जघन्यरूप से, आऊ-आयु, सत्तेव-सात ही, सागरोवमा-सागरोपम की है, उक्कोसेण-उत्कृष्टता से, दससागरोवमा-दस सागरोपम की, वियाहिया-कथन की गई है।
मूलार्थ-चतुर्थ नरक में नारकी जीवों की जघन्य आयु सात सागरोपम की और उत्कृष्ट दस सागरोपम की कथन की गई है।
टीका-चतुर्थ नरक में रहने वाले जीवों की उत्कृष्ट आयु-स्थिति दस सागर की और जघन्य सात सागर-प्रमाण होती है। अब पांचवें नरक के सम्बन्ध में कहते हैं- .
सत्तरससागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया । पंचमाए जहन्नेणं, दस चेव सागरोवमा ॥ १६४ ॥
सप्तदशसागरोपमाण्यायुः, उत्कर्षेण व्याख्याता ।
पञ्चमायां जघन्येन, दश चैव सागरोपमाणि ॥ १६४ ॥ पदार्थान्वयः-पंचमाए-पांचवीं नरक-भूमि में, जहन्नेणं-जघन्यरूप से, दस-दश, सागरोवमासागरोपम की, च-और, उक्कोसेण-उत्कृष्टता से, सत्तरससागरा-सप्तदश सागरोपम की, आऊ-आयु, वियाहिया-कथन की गई है, एव-अवधारण में है।
मूलार्थ-पांचवीं नरक-भूमि के जीवों की कम से कम आयु दस सागरोपम की और उत्कृष्ट सत्रह सागरोपम की कही गई है।
टीका-पांचवीं नरक-भूमि में रहने वाले जीवों की आयु-स्थिति कम से कम दस सागर की और अधिक से अधिक सत्रह सागर की होती है। अब छठे नरक के सम्बन्ध में कहते हैं, यथा
बावीससागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया । . छट्ठीए जहन्नेणं, सत्तरससागरोवमा ॥ १६५ .॥
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ४३६] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं