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वर्षों की, तु-पुनः, उक्कोसेण-उत्कृष्टता से, एगं-एक, सागरोवमं-सागरोपम की, वियाहिया-वर्णन की गई है।
मूलार्थ-पहली नरक-भूमि में नारकियों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम की कही गई है। ___टीका-रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में वर्तमान जीवों की जघन्य आयु दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम की कही गई है।
सागरोपम-एक योजन प्रमाण लम्बा और चौड़ा कूप यदि अत्यन्त सूक्ष्म केशारों से भरा जाए, फिर उसमें से सौ-सौ वर्ष के अनन्तर एक-एक खंड निकाला जाए और इस प्रकार जब वह सारा कूप खाली हो जाए तो एक पल्योपम होता है, ऐसे दस कोटाकोटी पल्योपमों का एक सागरोपम होता है। यही उत्कृष्ट स्थिति पहले नरक की है। अब द्वितीय नरक की स्थिति का वर्णन करते हैं
तिण्णेव सागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया । दोच्चाए जहन्नेणं, एगं तु सागरोवमं ॥१६१ ॥ त्रीण्येव सागरोपमाण्यायुः, उत्कर्षेण व्याख्याता ।
द्वितीयायां जघन्येन, एकन्तु सागरोपमम् ॥ १६१ ॥ पदार्थान्वयः-दोच्चाए-दसरी नरकभमि में, जहन्नेणं-जघन्यता से, एगं-एक, सागरोवमं-सागरोपम की, आऊ-आयु, तु-और, उक्कोसेण-उत्कृष्टता से, तिण्णेव-तीन, सागरा-सागरोपम की, वियाहिया-कथन की गई है। :
मूलार्थ-दूसरे नरक में नारकीयों की जघन्य आयुस्थिति एक सागरोपम की और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की है। ___टीका-प्रस्तुत गाथा में द्वितीय नरक में विद्यमान जीवों के आयुमान का उल्लेख किया गया है जो कि कम से कम एक सागर और अधिक से अधिक तीन सागर प्रमाण है। ___ अब तीसरे नरक के विषय में कहते हैं, यथा
सत्तेव सागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया । तइयाए जहन्नेणं, तिण्णेव सागरोवमा ॥१६२ ॥ सप्तैव सागरोपमाण्यायुः, उत्कर्षेण व्याख्याता ।
तृतीयायां जघन्येन, त्रीण्येव सागरोपमाणि ॥ १६२ ॥ पदार्थान्वयः-तइयाए-तीसरी नरक-भूमि में, जहन्नेणं-जघन्यता से, तिण्णेव-तीन ही, सागरोवमा-सागरोपम की, उक्कोसेण-उत्कृष्टता से, सत्तेव सागरा-सात ही सागरोपम की, आऊ-आयु, वियाहिया-प्रतिपादन की गई है।
मूलार्थ-तीसरे नरक में नारकी जीवों की जघन्य स्थिति तीन सागरोपम की और उत्कृष्ट
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ४३५] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं