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________________ अह सभिक्खू पंचदहं अज्झयणं अथ सभिक्षुर्नाम पञ्चदशमध्ययनम् चौदहवें अध्ययन में जो निदान से रहित होकर क्रियानुष्ठान करते हैं, उनके गुणों का वर्णन किया गया है परन्तु वे गुण भिक्षुओं में ही उपलब्ध होते हैं । अतः इस पन्द्रहवें अध्ययन में भिक्षुओं के ही गुणों का यत् किंचित् उल्लेख किया जाता है, : जिसकी कि आदिम गाथा इस प्रकार हैमोणं चरिस्सामि समिञ्च धम्म, सहिए उज्जुकडे नियाणछिन्ने। संथवं जहिल अकामकामे, अन्नायएसी परिव्वए स भिक्खू ॥१॥ मौनं चरिष्यामि समेत्य धर्म, ____ सहित ऋजुकृतः छिन्ननिदानः । संस्तवं जह्यादकामकामी, अज्ञातैषी परिव्रजेत् स भिक्षुः ॥१॥ पदार्थान्वयः-मोणं-संयमवृत्ति को चरिस्सामि-आचरण करूँगा समिञ्च-. विचार कर धम्म-धर्म को सहिए-सम्यग्दर्शनादि से युक्त उज्जुकडे-ऋजुकृत
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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