________________
पञ्चविंशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
[ १९३६
जल
नहीं होते । इस प्रकार जिन जीवों ने कर्मों का उपचय किया है और जिन्होंने नहीं किया, उन दोनों के फल में अन्तर बतलाते हुए कहते हैं कि जो भोगी जीव हैं, वे तो संसारचक्र में ही भ्रमण करते रहते हैं; और जिन्होंने इन विषयभोगों को सर्वथा त्याग दिया है, वे अभोगी आत्मा इस संसारचक्र से निकलकर अर्थात् कर्मों के जाल को सर्व प्रकार से तोड़कर मोक्षपद को प्राप्त कर लेते हैं। तात्पर्य यह है कि भोगों में आसक्ति रखने वाले जीव जन्म-मरण की परम्परा में फंसे रहते हैं और अभोगी-विषयभोगों से विरक्त—जीव कर्मों के बन्धन को तोड़कर मुक्त हो जाते हैं। इसलिए प्रत्येक मुमुक्षु को उचित है कि वह इन कामभोगादि विषयों को त्यागने का प्रयत्न करे।
अब उक्त विषय को एक दृष्टान्त के द्वारा स्फुट करते हैं । यथाउल्लोसुक्खो य दो छुढा, गोलया मट्टियामया। दो वि आवडिया कुड्डे, जो उल्लोसोऽत्थ लग्गई ॥४२॥ आर्द्रः शुष्कश्च द्वौ क्षिप्तौ, गोलको . मृत्तिकामयौ । द्वावप्यापतितौ कुड्ये, य आर्द्रः स तत्र गति ॥४२॥
. पदार्थान्वयः-उल्लो-आर्द्र य-और सुक्खो-शुष्क दो-दो छूढा-गेरे हुए गोलया-गोले मट्टियामया-मृत्तिकामय—मिट्टी के दो वि-दोनों ही आवडियागिरे हुए कुड्डे-भीत पर जो-जो उल्लो-आर्द्र-गीला होगा सो-वह अत्थ-उस भीत में लग्गई-लग जाता है।
मूलार्थ-गीला और शुष्क दो मिट्टी के गोले भीत पर फेंके गये। उनमें जो गीला होता है, वह भींत पर चिपट जाता है। ..... टीका-कर्मों के लेपसम्बन्धी विषय को समझाने के लिए मट्टी के दो गोलों का दृष्टान्त बड़ा ही स्थूल और जल्दी समझ में आ जाय, ऐसा है। जैसे कि मट्टी के दो गोले हैं। उनमें एक गीला है और दूसरा सूखा हुआ है। उन दोनों को यदि कोई पुरुष भीत पर फेंके तो उनमें जो गीला है, वह तो वहाँ चिपट जाता है और जो सूखा होता है, वह नहीं चिपटता; किन्तु नीचे गिर जाता है।