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________________ ११२४ ] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [पञ्चविंशाध्ययनम टीका-विजयघोष मुनि कहते हैं कि जो व्यक्ति देव, मनुष्य और पशुसम्बन्धी मैथुन का सेवन नहीं करता अर्थात् मन, वचन और शरीर इन तीनों से जिसने मैथुन का परित्याग कर दिया है, वही हमारे मत में ब्राह्मण है। यहाँ पर शरीर के अतिरिक्त मन और वचन के उल्लेख करने का अभिप्राय यह है कि मन, वाणी से भी मैथुन का त्याग कर देना चाहिए अर्थात् कामविषयक मानसिक चिन्तन और वाणी द्वारा कामोद्दीपक विषयों का निरूपण करना भी ब्रह्मचारी के लिए त्याज्य है। कारण कि जिनके अन्तःकरण में कामसम्बन्धी वासना विद्यमान है और जो अपनी वाणी के द्वारा कामवर्द्धक सामग्री का सुन्दर शब्दों में वर्णन करते हैं, वे पूर्णरूप से ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले नहीं कहे जा सकते । अत: तीन योग और तीन करणों से जिसने मैथुन का परित्याग कर दिया है, वही पूर्ण ब्रह्मचारी है और उसी को ब्राह्मण कहते हैं। अन्यत्र भी लिखा है-'देवमानुषतिर्यक्षु मैथुनं वर्जयेद्यदा । कामरागविरक्तश्च ब्रह्म सम्पद्यते तदा ॥' इत्यादि । प्रस्तुत गाथा में जो तिर्यग् शब्द का उल्लेख किया है, उसका कारण यह है कि बहुत से अज्ञ और पामर जीव ऐसे भी इस सृष्टि में विद्यमान हैं कि जो सृष्टिविरुद्ध आचरण करने से भी पीछे नहीं हटते। एतदर्थ अर्थात् तनिषेधार्थ उक्त शब्द का उपादान किया गया है। .. ____ अब फिर पूर्वोक्त विषय में कहते हैं अर्थात् ब्राह्मणत्व के निरूपणार्थ पाँचवें महाव्रत का उल्लेख करते हैं । यथा जहा पोमं जले जायं, नोवलिप्पह वारिणा। एवं अलितं कामेहि, तं वयं बूम माहणं ॥२७॥ यथा पद्मं जले जातं, नोपलिप्यते वारिणा। . एवमलितं कामैः, तं वयं ब्रूमो ब्राह्मणम् ॥२७॥ पदार्थान्वयः-जहा-जैसे पोम-पद्म जले-जल में जायं-उत्पन्न हुआ वारिणा-जल से न-नहीं उबलिप्पइ-उपलिप्त होता एवं-इसी प्रकार कामेहिकामभोगों से जो अलित्तं-अलिप्त है तं वयं बूम माहणं-उसको हम ब्राह्मण कहते हैं। ___ मूलार्थ-जैसे कमल जल में उत्पन्न होता है परन्तु वह जल से उपलिप्त नहीं होता। इसी प्रकार जो कामभोगों से अलिस है, उसी को हम बामण कहते हैं।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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