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________________ उत्तराध्ययन सूत्रम् [ पञ्चविंशाध्ययनम् मूलार्थ - क्रोध से, लोभ से, हास्य और भय से भी जो झूठ नहीं बोलता, उसको हम ब्राह्मण कहते हैं । १९१२२ टीका - इस गाथा में द्वितीय महाव्रत को लेकर ब्राह्मणत्व के स्वरूप का निरूपण करने के साथ २ इस बात को भी ध्वनित किया गया है कि असत्य किन २ कारणों से बोला जाता है। जैसे कि मनुष्य को झूठ बोलने का अवसर प्रायः क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य और भय आदि के कारणों से ही उपस्थित होता अर्थात् इन्हीं कारणों से मनुष्य झूठ बोलते हैं । कोई क्रोध के आवेश में आकर असत्य बोल जाता है, किसी को लोभ के वशीभूत होने पर असत्य बोलने के लिए बाधित होना पड़ता है तथा कोई भय के कारण झूठ बोलते हैं एवं हास्य के कारण भी अनेक पुरुष झूठ बोलते देखे जाते हैं परन्तु जो व्यक्ति इन उक्त कारणों के उपस्थित होने पर भी असत्य नहीं बोलता, वास्तव में वही ब्राह्मण है । इस कथन का अभिप्राय यह है कि जब तक मनुष्य के अन्दर लोभ आदि उक्त दोष विद्यमान हैं, तब तक वह असत्य के सम्भाषण से सर्वथा मुक्त नहीं हो सकता । और जहाँ उक्त दोषों का अभाव है, वहाँ असत्य का लोप हो जाता है। इसलिए जो असत्य का त्यागी है, वही सच्चा ब्राह्मण है । अन्यत्र भी इसी बात का समर्थन मिलता हैं । यथा - 'यदा सर्वानृतं त्यक्तं मिथ्याभाषा विवर्जिता । अनवद्यं च भाषेत ब्रह्म सम्पद्यते तदा ||' 'अश्वमेधसहस्रं च सत्यं च तुलया धृतम् । अश्वमेधसहस्राद्धि सत्यमेव विशिष्यते ।।' तात्पर्य यह है कि सत्य की सहस्रों अश्वमेधों से भी अधिक महिमा है । अब तृतीय महाव्रत की व्याख्या में उक्त विषय का वर्णन करते हैं। यथा चित्तमन्तमचित्तं वा अप्पं वा जइ वा बहुं । न गिण्हाइ अदत्तं जे, तं वयं बूम माहणं ॥ २५ ॥ चित्तवन्तमचित्तं वा, अल्पं वा यदि वा बहुम् । न गृह्णात्यदत्तं यः तं वयं ब्रूमो ब्राह्मणम् ॥२५॥ पदार्थान्वयः:——-चित्तमन्तम्-चेतना वाले पदार्थ वा अथवा अचित्तं - चेतना रहित अप्पं- स्तोक वा अथवा बहु- बहुत जइ वा यदि जे- जो अदत्तं विना दिये न गिण्हाइ-प्रहण नहीं करता तं वयं बूम माहणं - उसको हम ब्राह्मण कहते हैं ।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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