________________
पञ्चविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
[१११७ हो रही है। सारांश यह है कि आपके इन यज्ञप्रिय ब्राह्मणों में ब्राह्मणोचित गुणों का अभाव होने से ब्राह्मणत्व प्रतीत नहीं होता । किसी किसी प्रति में 'मूढा' के स्थान पर 'गूढा' पाठ देखने में आता है । तब 'गूढा सज्झायतवसा-गूढाः खाध्यायतपसा'-इसका अर्थ होता है स्वाध्याय और तप से गूढ अर्थात् छिपे हुए । तात्पर्य यह है कि बाह्य वृत्ति से तो वे स्वाध्यायशील और तपस्वी प्रतीत होते हैं परन्तु अन्तःकरण उनका कषायों की प्रचण्ड ज्वालाओं से प्रदीप्त हो रहा है। इसके अतिरिक्त विजामाहणसंपया' और 'मूढा सज्झायतवसा' इन दोनों वाक्यों में 'सुप्' का व्यत्यय किया गया है । प्रथम में षष्ठी के स्थान पर तीया और दूसरे में सप्तमी के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग किया है। । तब, ब्राह्मण कौन है ? और उसके क्या लक्षण हैं ? इस जिज्ञासा की पूर्ति के लिए अब ब्राह्मणत्व के विषय में कहते हैंजो लोए बम्भणो वुत्तो, अग्गीव महिओ जहा। सया कुसलसंदिटुं, तं वयं बूम माहणं ॥१९॥ यो लोके ब्राह्मण उक्तः; अग्निरिव महितो यथा । सदा कुशलसन्दिष्टं, तं वयं ब्रूमो ब्राह्मणम् ॥१९॥ . पदार्थान्वयः-जो-जो लोए-लोक में बम्भणो-ब्राह्मण वुत्तो-कहा गया है जहा-जैसे अग्गी-अग्नि महिओ-पूजित है—तद्वत् पूजित । व-पादपूर्ति में है। सया-सदैव काल कुसलसंदिहं-कुशलों द्वारा संदिष्ट तं-उसको वयं-हम माहणंब्राह्मण बूम-कहते हैं। ___ मूलार्थ जो कुशलों द्वारा संदिष्ट अर्थात् जिसको कुशलों ने ब्राह्मण कहा है और जो लोक में अग्नि के समान पूजनीय है, उसको हम ब्राह्मण कहते हैं।
टीका-प्रस्तुत गाथा में प्रथम ब्राह्मण शब्द का महत्त्व सूचन किया गया है। जयघोष मुनि कहते हैं कि जो ब्राह्मण है, वह लोक-जगत्-में अग्नि की भाँति पूजनीय होता है । अर्थात् जैसे लोग अग्नि की उपासना करते हैं और घृत आदि के अभिषेक से उसे प्रदीप्त करते हैं, उसी प्रकार लोगों के द्वारा ब्राह्मण भी