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________________ १११२] उत्तराध्ययनसूत्रम् [ पञ्चविंशाध्ययनम् पदार्थान्वयः—वेयाणं-वेदों के मुहं - मुख को बूहि - कहो च - और जं-जो जन्नाण-यज्ञों का मुहं - मुख है बूहि - कहो। नक्खत्ताण - नक्षत्रों के मुहं - मुख को ब्रूहि - कहो वा - तथा धम्माण - धर्मों के मुहं - मुख को बूहि - कहो । जे - जो समत्था - समर्थ हैं समुद्धतुं - उद्धार करने में परंपर के य और अप्पाणं - अपने आत्मा के एव - निश्चयार्थक है एयं - इस मे - मेरे सव्वं - सर्व संसयं - संशय को साहू - हे साधो ! पुच्छिओ - पूछे हुए आप कहसु - कहो । मूलार्थ - हे साधो ! वेदों मुख को कहो । यज्ञों के मुख को कहो । नक्षत्रों के मुख को और धर्मों के मुख को कहो एवं पर और अपने आत्मा के उद्धार करने में जो समर्थ है, उसे भी कहो । मेरे ये सर्व संशय हैं। मेरे पूछने पर आप इनके विषय में अवश्य कहो । 1 टीका - अपनी विद्वन्मण्डली के साथ उक्त मुनि के सम्मुख उपस्थित हुए विजयघोष ने बड़ी नम्रता के साथ इस प्रकार पूछना आरम्भ किया । यथाहेमुने ! वेदों का मुख क्या है ? अर्थात् वेदों में मुख्य उपादेय वस्तु क्या है ? अथवा वेदों में जो मुख्य — उपादेय वस्तु है, आप उसे बतलाइए तथा यज्ञों और नक्षत्रों का जो मुख है, उसे भी आप प्रकट करें एवं धर्मों का मुख भी आप बतलाने की कृपा करें। इसके अतिरिक्त अपने और पर के आत्मा का उद्धार करने में जो समर्थ है, उसका भी आप वर्णन करें। मैं आपसे विनयपूर्वक पूछ रहा हूँ । अतः आप मेरे इन उक्त सर्व संशयों को दूर करने की अवश्य कृपा करें, इत्यादि । मुख इन दोनों गाथाओं में जयघोष मुनि के द्वारा किये गये प्रश्नों का उन्हीं के उत्तर सुनने जिज्ञासा प्रकट की गई है। क्योंकि उनका जिस प्रकार का यथार्थ उत्तर उनसे प्राप्त हो सकता है, वैसा और किसी से मिलना दुर्घट है । इस आशय से विजयघोष ने उनसे उक्त प्रश्नों के उत्तर की याचना की है । पहली गाथा में जो 'बूहि' शब्द का अनेक वार प्रयोग किया है, वह केवल आदर सम्मान के द्योतनार्थ है । अतः पुनरुक्ति की आशंका के लिए यहाँ पर स्थान नहीं है। संशय उसको कहते हैं, जिसमें मन दोलायमान रहे — ' संशेतेऽस्मिन् मन इति संशयः' । ‘एव' शब्द यहाँ पर अवधारण अर्थ में है। [ युग्मव्याख्या ] से
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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