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________________ चतुर्विशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [ १०७६ ... क्रोधे माने च मायायां, लोभे . चोपयुक्तता। - हास्ये भये च मौखर्ये, विकथासु तथैव च ॥९॥ पदार्थान्वयः–कोहे-क्रोध में माणे-मान में य-और मायाए-माया में य-पुनः लोमे-लोभ में हासे-हास्य में भए-भय में मोहरिए-मुखरता में तहेवउसी प्रकार विकहासु-विकथा में य-पुनः उवउत्तया-उपयुक्तता-उपयोगपना । मूलार्थ-क्रोध, मान, माया, लोम तथा हास्य, भय, मुखरता और विकथा में उपयुक्तता होनी चाहिए। टीका-प्रस्तुत गाथा में भाषासमिति का वर्णन किया गया है। भाषासमिति की रक्षा के लिए क्रोध, मान, माया और लोभ में तथा हास्य, भय, मुखरता और विकथा में उपयुक्तता होनी चाहिए अर्थात् भाषण करते समय इन उपर्युक्त दोषों के सम्पर्क का पूरे विवेक से ध्यान रखना चाहिए । क्योंकि इनके कारण ही असत्य बोला जाता है अर्थात् क्रोधादि के वशीभूत होकर सत्यप्रिय मनुष्य भी असत्य बोलने को तैयार हो जाता है । अत: सत्य की रक्षा के लिए इन क्रोधादि का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। मौखर्य—मुखरता का अर्थ है । दूसरे की निन्दा, चुगली आदि करना यह दोष भी सत्य का विघातक है । मुखरताप्रिय जीव अपने सम्भाषण में असत्य का अधिक व्यवहार करते हैं । यहाँ पर 'उपयुक्तता' से यह अभिप्रेत है . • कि कदाचित् क्रोधादि के कारण संभाषण में असत्य के सम्पर्क की संभावना हो जाय तो विवेकशील आत्मा उस पर अवश्य विचार करे और उससे बचने का प्रयत्न करे । कारण कि असत्य का प्रयोग प्रायः अनुपयुक्त दशा में ही होता है। इसलिए शास्त्रकार कहते हैं किएयाई अटू ठाणाई, परिवजित्तु संजए । असावखं मियं काले, भासं भासिज्ज पनवं ॥१०॥ एतान्यष्टौ स्थानानि, परिवर्त्य संयतः ।।.. असावद्यां मितां काले, भाषां भाषेत प्रज्ञावान् ॥१०॥
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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