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उत्तराध्ययनसूत्रम्- [चतुर्विंशाध्ययनम् टीका-समिति और गुप्ति को प्रवचन माता इसलिए कहा है कि ये प्रवचन को प्रसूत-उत्पन्न करने वाली हैं । तात्पर्य यह है कि जैसे द्रव्यमाता पुत्र को जन्म देती है, उसी प्रकार भावमाता समिति और गुप्तिरूप हैं जो कि प्रवचन को जन्म देती हैं । ये प्रवचन माताएँ आठ हैं। इनमें पाँच समिति के नाम से प्रसिद्ध हैं
और तीन गुप्ति के नाम से विख्यात है। इसके अतिरिक्त ये आठों ही प्रवचन माताएँ प्रवचन की उत्पादक होने के साथ साथ उसकी संरक्षक भी हैं। तात्पर्य यह है कि जैसे माता पुत्र को जन्म देने के पश्चात् उसकी सर्व प्रकार से रक्षा भी करती है, उसी प्रकार यह समिति गुप्तिरूप माता प्रवचनरूप पुत्र को जन्म देकर उसका संरक्षण भी करती है जिससे कि श्रुतज्ञान के द्वारा सम्यक् शिक्षा को प्राप्त करता ' हुआ भव्यजीव मोक्ष-मंदिर में पहुँच जाता है। ठीक प्रवचन के अनुसार आत्मा की जो चेष्टा है, उसे समिति कहते हैं और मन, वचन, काया के सम्यग्योगनिग्रह का नाम गुप्ति है । यह इनकी तान्त्रिक शास्त्रप्रसिद्ध संज्ञा है । तात्पर्य यह है कि तीर्थकर भगवान् ने इनका इसी तरह से विवरण किया है । मुमुक्षु जनों के लिए इनकी आराधना परम आवश्यक है। .
अब इनके नामों का निर्देश किया जाता है। यथा- . इरियाभासेसणादाणे, उच्चारे समिई इय। मणगुत्ती वयगुत्ती, कायगुत्ती य अदुमा ॥२॥ ईर्याभाषेषणादानोच्चाररूपाः समितय इति । मनोगुप्तिर्वचोगुप्तिः , कायगुप्तिश्चाष्टमी ॥२॥
पदार्थान्वयः-इरिया-ईर्या भासे-भाषा एसणा-एषणा आदाणे-आदान य-और उच्चारे-उच्चार समिई-समितियाँ हैं इय-इतनी मणोगुची-मनोगुप्ति वयगुत्ती-वचनगुप्ति य-और कायगुत्ती-कायगुप्ति अट्ठमा-आठवीं। : मूलार्थ-ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदानसमिति और उच्चारसमिति तथा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और आठवीं कापगुप्ति है । यही आठ प्रवचन माताएँ हैं।