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अह समिइनो चउवीसइमं अज्झयणं
अथ समितयः (इति) चतुर्विंशमध्ययनम्
गत तेईसवें अध्ययन में इस बात का वर्णन किया है कि यदि चित्त में किसी प्रकार की शंका उत्पन्न हो जाय तो केशी मुनि और गौतम गणधर की तरह उसकी निवृत्ति करने का उपाय करना चाहिए परन्तु शंकाओं के निराकरण में सम्यक् वचनयोग का होना नितान्त आवश्यक है और वाग्योग के लिए प्रवचन माताओं के ज्ञान की आवश्यकता है । अतः इस चौबीसवें अध्ययन में प्रवचन माताओं के स्वरूप का दिग्दर्शन कराते हैं । यथा. अटू पवयणमायाओ, समिई गुत्ती तहेव य ।
पंचेव य समिईओ, तओगुत्तीउ आहिआ ॥१॥
अष्टौ प्रवचनमातरः, समितयो गुप्तयस्तथैव च । । पञ्चैव च समितयः, तिस्रो गुप्तय आख्याताः ॥१॥
.. पदार्थान्वयः-अट्ठ-आठ पवयण-प्रवचन मायाओ-माताएँ हैं समिईसमिति य-और तहेव-उसी प्रकार गुत्ती-गुप्तियाँ पंच-पाँच एव-निश्चय में सामिईओ-समितियाँ य-और तओ-तीन गुत्तीउ-गुप्तियाँ आहिआ-कही गई हैं।
मूलार्थ-समिति और गुप्तिरूप आठ प्रवचन माताएँ हैं, जैसे कि पाँच समितियां और तीन गुप्तियाँ। .