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उत्तराध्ययनसूत्रम्-
[त्रयोविंशाध्ययनम्
तोषिता परिषत् सर्वा, सन्मार्ग समुपस्थितौ । संस्तुतौ तौ प्रसीदताम्, भगवन्तौ केशिगौतमौ ॥८९॥
इति ब्रवीमि। केशिगौतमीयं त्रयोविंशमध्ययनं समाप्तम् ॥२३॥
पदार्थान्वयः-तोसिया-सन्तुष्ट हुई परिसा-परिषत् सव्वा-सर्व और सम्मग्गं-सन्मार्ग में समुवटिया-समुपस्थित हुई भयवं-भगवान् केसिमोयमे-केशी
और गौतम संथुया-स्तुति किये गये ते वे दोनों पसीयन्तु-प्रसन्न होवें त्ति बेमिइस प्रकार मैं कहता हूँ। यह केशिगौतमीय अध्ययन समाप्त हुआ।
मूलार्थ-सर्वपरिषत् उक्त संवाद को सुनकर-सन्मार्ग में प्रवृत्त ई तथा भगवान् केशीकुमार और गौतम स्वामी प्रसन्न हों, इस प्रकार परिषद् ने उनकी स्तुति की।
टीका-उक्त दोनों महर्षियों के धार्मिक संवाद में जो धर्मसम्बन्धी निर्णय हुआ, उसको सुनकर देवों और मनुष्यों की परिषद् को बड़ी प्रसन्नता हुई
और वह सन्मार्ग में प्रवृत्त होने को उद्यत हो गई । अतएव उसने केशीकुमार और गौतम स्वामी की उचित शब्दों में प्रशंसा करते हुए उनमें अपनी विशिष्ट श्रद्धा-भक्ति का परिचय दिया।
वास्तव में, महापुरुषों के संवाद में किये गये तत्त्वनिर्णय से अनेक भव्य पुरुषों को लाभ पहुँचता है। इसलिए परिषद् के द्वारा इन दोनों महापुरुषों की स्तुति का किया जाना सर्वथा समुचित है । इस सन्दर्भ में प्रथम दो प्रश्नों को छोड़कर शेष दश प्रश्नों में गुप्तोपमालंकार से वर्णन किया गया है ताकि श्रोताओं को प्रश्नविषयक स्फुट उत्तर जानने की पूरी इच्छा बनी रहे । इसके अतिरिक्त 'त्ति बेमि' की व्याख्या पूर्व की ही भाँति समझ लेनी । इस प्रकार यह तेईसवाँ अध्ययन समाप्त हुआ।
प्रयोविंशाध्ययन समाप्त।