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प्रयोविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
[१०६७ पदार्थान्वयः साहु-साधु उत्तम है गोयम-हे गौतम ! ते-तेरी पन्ना-प्रज्ञा मे मेरा इमो-यह संसओ-संशय छिन्नो-छेदन कर दिया आपने संसयातीत-हे संशयातीत ! सव्वसुत्तमहोहही-हे सर्वसूत्रमहोदधि ! नमो-नमस्कार हो ते-आपको। ... मूलार्थ-हे गौतम ! आपकी प्रज्ञा साधु है । आपने मेरे संशय को छेदन कर दिया है। अतः हे संशयातीत ! हे सर्वसूत्र के पारगामी ! आपको नमस्कार है।
टीका केशीकुमार मुनि गौतम स्वामी की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि हे गौतम ! आपकी प्रज्ञा को धन्य है । क्योंकि आपने मेरे सारे सन्देह दूर कर दिये । आप सारे आगमों के समुद्र हैं और सर्व प्रकार के संशयों से रहित हैं। अतः आपको मेरा बार बार नमस्कार है। प्रस्तुत गाथा में केशीकुमार मुनि के ज्ञान और ज्ञानवान् के विनय का दिग्दर्शन कराते हुए विनयधर्म के आदर्श का जो चित्र खींचा गया है, वह प्रत्येक भव्य जीव के लिए दर्शनीय और अनुकरणीय है। ___इस प्रकार केशीकुमार के मन, वाणी द्वारा किये गये विनय का वर्णन करके
अब उसके कायिक विनय का दिग्दर्शन कराते हुए साथ में उक्त शास्त्रार्थ के परिणाम . का भी वर्णन करते हैं । यथा
एवं तु संसए छिन्ने, केसी घोरपरक्कमे। अभिवन्दित्ता सिरसा, गोयमं तु महायसं ॥८६॥ पंचमहव्वयधम्मं , पडिवजइ भावओ। पुरिमस्स पच्छिमम्मि, मग्गे तत्थ सुहावहे ॥८॥ एवं तु संशये छिन्ने, केशी घोरपराक्रमः । अभिवन्य शिरसा, गौतमं तु महायशसम् ॥८६॥ पञ्चमहाव्रतधर्म , प्रतिपद्यते भावतः । पूर्वस्य पश्चिमे, मार्गे तत्र सुखावहे ॥८७॥
' पदार्थान्वयः-एवं-इस प्रकार तु-निश्चय संसए-संशय छिमे-छेदन हो जाने पर केसी-केशीकुमार मुनि घोरपरकमे-घोर पराक्रम वाला महायसं-महान्