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चतुर्दशाध्ययनम् ] .. हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
[६१७ और वृद्धावस्था का आगमन होगा-ज्ञानदर्शन और चारित्र रूप जो प्रधान-श्रेष्ठ मार्ग है, उसको ग्रहण करेंगे । तात्पर्य कि यदि अनेक प्रकार से समझाने पर भी ये दोनों कुमार घर से जाते हैं तो जाने दो। हम बाद में चले जायेंगे अथवा हमारे घर में
और पुत्र हो जायेंगे । अतः इनके साथ हमको जाने की आवश्यकता नहीं और यह प्राप्त हुई कामभोग की सामग्री का फिर मिलना भी नितान्त कठिन है।
अब भृगुपुरोहित कहते हैं किभुत्ता रसा भोइ जहाइणे वओ,
न जीवियट्ठा पजहामि भोए । लाभं अलाभं च सुहं च दुक्खं,
संचिक्खमाणो चरिस्सामि मोणं ॥३२॥ भुक्ता रसा भवति ! जहति नो वयः, __ न जीवितार्थं प्रजहामि भोगान् । लाभमलाभं च सुखं च दुःखं,
संवीक्षमाणश्चरिष्यामि मौनम् ॥३२॥ पदार्थान्वयः-भोइ-हे प्रिये ! भुत्ता-भोग लिये रसा-रस जहाइ-छोड़ता है णे-हमको वओ-यौवन वय-अवस्था जीवियहा-जीवन के वास्ते भोए-भोगों को न पजहामि-नहीं छोड़ता हूँ लाभ-लाभ च-और अलाभ-अलाभ सुह-सुख च-और दुक्ख-दुःख को संचिक्खमाणो-सम्यक् प्रकार से विचारता हुआ मोणं-मुनिवृत्ति को चरिस्सामि-आचरण करूँगा।
मूलार्थ हे प्रिये ! रसों को हमने भोग लिया है। यौवन वय हमको छोड़ता चला जा रहा है । मैं जीवन के लिए भोगों को नहीं छोड़ता हूं अपितु लाभ अलाभ, सुख और दुःख को सम्यक प्रकार से देखता हुआ मुनिवृत्ति का आचरण करूँगा।'
टीका-पुरोहित जी अपनी यशा नानी भार्या से कहते हैं कि हे प्रिये ! रसादि पदार्थों को हमने खूब भोगा। अब यौवन हमें छोड़ता जाता है। इसलिए मैं